।। आचार्य मानतुंग कृत भक्तामर स्तोत्र ।।
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सम्यक् श्रद्धा सार, देव शास्त्र गुरू भाई।
सम्यक् तत्व विचार, सम्यक् ज्ञान कहाई।।
सम्यक् होय आचार, सम्यक् चारित गाई।
ऋद्धि-सिद्धि सब पाय, जो जिन मारग धाई।।7।।

वीतराग जिनबिम्ब, मूरत हो सुखदाई।
दर्पण सम निजबिम्ब, दिखता जिसमें भाई।
दर्पण सम निजबिम्ब, दिखता जिसमें भाई।।
कर्म कलंक नशाय, जो नित दर्शन पाते।
ऋद्धि-सिद्धि सब पाय, जो नित चैत्य को ध्याते।।8।।

वीतराग जिनबिम्ब, कृत्रिमाकृत्रिम जितने।
शोभत हैं जिस देश, है चैत्यालय उतने।।
उन सबकी जो सार, भक्ति महिमा गावे।
ऋद्धि-सिद्धि सब पाय, जो चैत्यालय ध्यावे।।9।।

दोहा

नव देवता को नित भजे, कर्म कलंक नशाय।
भव सागर से पार हो, शिव सुख में रम जाय।।

नोट --प्रतिदिन प्रातः पाठ करने से जीवन सुख, शान्ति और समृद्धि को प्राप्त होता है।

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