।। भगवान् अद्वितीय सुन्दर हैं ।।
आचार्य मानतुंग कृत भक्तामर स्तोत्र
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यैः शान्त-राग-रूचिभिः परमाणुभिस्त्वम्,
निर्मापितस्त्रि-भुवनैक-ललाम-भूत!
तावन्त एव खलु तेऽप्यणवः पृथिव्याम्,
यत्ते समान-मपरं न हि रूपमस्ति।।12।।
jain temple427

अन्वयार्थ-(त्रिभुवनैकललामभूत!) हे त्रिभुवन के एक मुकुट रूप जिनेन्द्र ! (यैः) जिन (शान्तरागरूचिभिः) राग रहित उज्ज्वल, सुन्दर (परमाणुभिः) परमाणुओं के द्वारा (त्वम्) आप (निर्मापित) रचे गये हैं (खलु) निश्चय से (ते अणवः अपि) वे परमाणु भी (पृथिव्याम्) पृथ्वी पर (तावन्तः) एवं (बभूवः) उतने ही थे (यत्) क्योंकि (ते समानम्) आपके समान (अपरम्) दूसरा (रूपम्) रूप (न हि अस्ति) नहीं है।

भावार्थ-हे जिनेन्द्र! जिन उत्तमोत्तम सुन्दर परमाणुओं से आपके सुन्दर शरीर की रचना हुई; मालूम होता है कि परमाणु उतने ही थे। क्योंकि यदि उससे अधिक परमाणु होते तो आपके समान सुन्दर दूसरा रूप भी होना चाहिए थाद्ध परन्तु आपके समान सुन्दर रूप इस पृथ्वी पर है ही नहीं। अतः स्पष्ट है िकवे परमाणु उतने ही थे। भगवान्। आप अद्वितीय सुन्दर हैं।

प्रश्न - 1तीन लोक में सबसे अधिक सुन्दर रूप किसका है?

उत्तर- तीन लोक में जिनेन्द्रदेव का रूप सबसे अधिक सुन्दर है।

प्रश्न - 2कारण बताइये?

उत्तर- क्योंकि उनके समान और कोई सुन्दर दिखाई देता ही नहीं है।

प्रश्न - 3क्यों नहीं दिखाई देता है?

उत्तर- उत्तमोत्तम सुन्दर परमाणु जितने भी थे वे सारे के सारे जिनेन्द्र देव के शरीर में समा गये। अतः अन्य कोई आपके समान सुन्दर दिखाई नहीं देता है।