।। सहस्त्रनामों से जिन स्तवन ।।
आचार्य मानतुंग कृत भक्तामर स्तोत्र
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त्वामव्ययं विभुमचिन्त्यमसंख्यमाद्यं,
ब्रह्मणमीश्वरमनन्तमनंगकेतुम्।
योगीश्वरं विदित-योगमनेकमेकं,
ज्ञान्स्वरूपममलं प्रवदन्ति सन्तः।।24।।
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अन्वयार्थ-(सन्तः) सज्जन पुरूष (त्वाम्) आपको (अव्ययम्) अव्यय (विभुम्) विभु (अचिनत्यम्) अचिन्त्य (असंख्यम्) असंख्य (आद्यम्) आद्य (ब्रह्मा) ईश्वर (अनन्तम्) अनन्त (अनंगकेतुम्) अनंगकेतु (योगश्वरम्) विदितयोग (अनेकम्) अनेक (एकम्) एक (ज्ञानस्वरूपं) ज्ञानस्वरूप और (अमलम्) अमल (प्रवदन्ति) कहते हैं।

भावार्थ-सज्जन पुरूष, जिनेन्द्रदेव की सहस्त्रनामों से स्तुति करते हैं जैसे- हे भगवान् आप अव्यय, विभु, अचिन्त्य, असंख्य, आद्य, ब्रह्म, ईश्वर, अनन्त, अनंगकेतु, योगीश्वर, विदितयोग, अनेक, एक, ज्ञानस्वरूप एवं अमल हैं।

प्रश्न - 1भगवान् को अव्यय क्यों कहते है?

उत्तर- भगवान् की आत्मा का कभी नाश नहीं होता अथवा वे अपने पद से कभी च्युत नहीं होते इसलिए अनको अव्यय, अविनाशी कहते हैं।

प्रश्न - 2 भगवान् को विभु क्यों कहते हैं?

उत्तर- वीतराग भगवान् का ज्ञान तीन लोक में फैला हुआ है। इसलिए उनको विभु (व्यापक) कहते हैं।

प्रश्न - 3 अचिन्त्य क्यों कहते हैं?

उत्तर- भगवान् चिन्तन के अयोग्य हैं इसलिये अचिन्त्य कहलाते हैं। अथवा आपके स्वरूप या गुणों का कोई चिन्तन नहीं कर सकता है इसलिये आप अचिन्त्य हैं।

प्रश्न - 4 भगवान् के लिए असंख्य विशेषण क्यों?

उत्तर- भगवान् के गुणों की संख्या नहीं है, इसलिए उन्हें असंख्य कहते हैं।

प्रश्न - 5 आद्य विशेषण किसलिये है।

उत्तर- भगवान् आदिनाथ स्वामी युग के आदि में हुए अथवा इस युग में चैबीस तीर्थंकरों में प्रथम हैं, इसलिए आपको ‘‘आद्य’’ प्रथम कहते हैं।

प्रश्न - 6 आदिनाथ प्रभु, ब्रह्मा, ईश्वर, अनन्त, अनंगकेतु, योगीश्वर, विदितयोग, अनेक, एक ज्ञान स्वरूप क्यों हैं?

उत्तर-

1 - आदिनाथ प्रभु कर्मों से रहित अथवा गुणों से बढ़े हुए हैंे इसलिए ब्रह्मा है।

2 - आप कृतकृत्य हैं इसलिये ईश्वर है।

3 - आप सामान्य स्वरूपापेक्षा अन्तरहित हैं इसलिए अनन्त हैं।

4 - काम को नष्ट करने के लिए केतु ग्रह के समान हैं इसलिए अनंगकेतु हैं।

5 - आप मुनियों के स्वामी होने से योगीश्वर हैं।

6 - योग-धयानादि को जानने वाले होने से आप ‘विदित योग- हैं।

7 - पर्यायों की अपेक्षा आप अनेक हैं। इसलिए आपको अनेक कहते हैं।

8 - स्वरूप सामान्य की अपेक्षा आप एक हैं इसलिए आपको एक कहते हैं।

9 - आपके केव्लज्ञान स्वरूप हैं इसलिए आपको ज्ञान स्वरूप कहते ह।ं।

10 - आप कर्ममल से रहित हैं इसलिए अमल कहलाते हैं।

इस प्रकार अनेक नामों से भगवान् की स्तुति करने वाला जीव सुख-शान्ति,, ऐश्वर्य, धन-धान्य, आदि को प्राप्त मुक्ति नारी का भाजन बनता है।