अन्वयार्थ-(मुनीन्द्र) हे मुनियों के इन्द्र! (त्वम्) तुम (कदाचित्) कभी (न अस्तम् उपयासि) अस्त नहीं होते हों (न राहुगम्यः) न राहु के द्वारा ग्रसे जाते हो और (न अम्भोधरोदर निरूद्ध महाप्रभावः) न मेघ केे मध्य में छिप गया है महान् तेज जिसका ऐसे भी हों, तथा (युगपत्) एक साथ (जगन्ति) तीनों लोकों (सहसा) शीघ्र ही (स्पष्टीकरोषि) प्रकाशित करते हो (इति) इस तरह आप (सूर्यातिशायि महिमा असि) सूर्य से भी अधिक महिमा वाले हो।
भावार्थ-हे प्रभो! आपकी महिमा सूर्य से भी अधिक है। आप अपूर्व सूर्य हैं। आप कभी भी अस्त नहीं होते। राहु से ग्रसे जाते नहीं हो। आपका अपूर्व तेज एक साथ तीनों लोकों को प्रकाशित करता है।
प्रश्न - 1भगवान् की महिमा सूर्य से भी अधिक क्यों है?
उत्तर- 1. सूर्य सन्ध्या के समय अस्त हो जाता है, पर जिनेन्द्र सूर्य कभी अस्त नहीं होता है। 2. सूर्य को राहु ग्रस लेता है आपको आज तक कोई ग्रस नहीं पाया। 3. सूर्य क्रम-क्रम से सिर्फ मध्य लोक को प्रकाशित करता है पर जिनेन्द्र सूर्य एक साथ तीन लोक को प्रकाशित करता है। 4. सूर्य के तेज को मेघ रोक लेते हैं पर आपके ज्ञानतेज को कोई नहीं रोक सकता है।
इस कारण जिनेन्द्र देव को अपूर्व सूर्य कहा जाता है।
अन्वयार्थ-(नित्योदयम्) हमेशा उदय रहने वाला (दलितमोह महान्धकारम्) मोहरूपी अन्धकार को नष्ट करने वाला (राहुवदनस्य न गम्यम्) राहु के मुख द्वारा ग्रसे जाने के अयोग्य (वारिदानां न गम्यम्) मेघों के द्वारा छिपाने के अयोग्य (अनल्पकान्ति) अधिक कान्ति वाला और (जगत्) संसार को (विद्योतयत्) प्रकाशित करने वाला (तव) आपका (मुखाब्जम्) मुख कमलरूपी (अपूर्व शाशांक बिम्बम्) अपूर्व चन्द्रमा (विभ्राजते) शोभित होता है।
भावार्थ- हे भगवन्! आपका मुखकमल अपूर्व चन्द्रमा है।
प्रश्न - 1 भगवान् का मुखकमल अपूर्व चन्द्रमा क्यों है?
उत्तर-
1 - चन्द्रमा दिन में अस्त हो जाता है। पर आपका मुख-चन्द्र सदा उदित रहता है।
2 - चन्द्रमा सिर्फ अन्धकार को नष्ट करता है पर आपका मुखचन्द्र मोहरूपी अन्धकार को नष्ट कर देता है।
3 - चन्द्रमा राहु के द्वारा ग्रसा जाता है पर आपके मुखचन्द्र को राहु नहीं ग्रस सकता है।
4 - चन्द्रमा को बादल छिपा लेते हैं, पर आपके मुखचन्द्र को बादल छिपा नहीं सकते हैं।
5 - चन्द्रमा की कान्ति कृष्ण पक्ष में घट जाती है पर आपके मुखचन्द्र की कान्ति हमेशा बढ़ती ही रहती है।
6 - चन्द्रमा सिर्फ मध्यलोक को प्रकाशित करता है पर आपका मुखचन्द्र तीनों लोकों को प्रकाशित करता है।
अतः जिनेन्द्र अपूर्व चन्द्रमा है।