।। स्व-अल्पज्ञता-प्रकाशन व सरस्वती प्रदाता ।।
आचार्य मानतुंग कृत भक्तामर स्तोत्र
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अल्प-श्रुतं श्रुतवतां परिहास-धाम,
त्वद्भक्तिरेव मुखरीकुरूते बलान्माम्।
यत्कोकिलः किल मधौ मधुरं विरौति,
तच्चाम्र-चारू-कलिका-निकरैक-हेतुः।।6।।
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अन्वयार्थ-(श्रुतवताम्) विद्वानों की (परिहास धाम) हंसी के पात्र (अल्पश्रुतम्) अल्पज्ञानी (माम्) मुझको (त्वद्भक्तिः एव) आपकी ीाथ्कत ही (बलात्) जबरन (मुखरी कुरूते) वाचाल करती है। (किल)े निश्चय से (मधौ) वसन्त ऋतु में (कोकिलः) कोयल (यत्) जो (मधुरम् विरौती) मीठे शब्द बोलती है (तत्) वह (च) और (आम्रचारू कलिकानिकरैकहेतुः) आम की सुन्दर मंजरी के समूह के कारण ही करती है।

भावार्थ-हे भगवन्! जैस कोयल वसन्त ऋतु में आम्र मंजरी के कारण मीठे-मीठे शब्द बोलने लगती है वैसे ही मैं अल्पज्ञानी होता हुआभी सिर्फ आपकी भक्ति से आपकी स्तुति करता हूं।

प्रश्न - 1वसनत ऋतु में मीठे-मीठे गीत कौन गाती है?

उत्तर- कोयल।

प्रश्न - 2 उसका हेतु (कारण) क्या है?

उत्तर- कायेल के गाने का हेतु आम्रमंजरी है।

प्रश्न - 3 विद्वानों के द्वारा अपने को हंसी का पात्र कैन कह रहा है?

उत्तर- मानतुंगाचार्य।

प्रश्न - 4 क्या वे सचमुच अल्पज्ञ थे?

उत्तर- नहीं, यहां वे विनयपूर्वक अपनी लघुता प्रदर्शित कर रहे हैं।

प्रश्न - 5 मानतुंगाचार्य की स्तुति का कारा क्या है?

उत्तर- एकमात्र प्रभु-भक्ति ही स्तुति में कारण है।

प्रश्न - 6 इस श्लोक के पठन का क्या लाभ है?

उत्तर- यह श्लोक ज्ञानवर्धक है। विद्यार्थी को अध्ययन के पूर्व इसका पाठ अवश्य करना चाहिए।