।। जिनाश्रय की महिमा ।।
आचार्य मानतुंग कृत भक्तामर स्तोत्र
संबंधित सूची
सम्पूर्णमण्डल-शशांक-कला-कलाल-
शुभ्रा गुणास्त्रि भुवनं तव लघयन्ति।
ये संश्रितास्त्रि-जगदीश्वर-नाथमेकं,
कस्तान्निवारयित संचरतो यथेष्टम्।।14।।
jain temple429

अन्वयार्थ-(सम्पूर्णमण्डलशशांककलाकलाप शुभ्रा) पूर्ण चन्द्रबिम्ब की कलाओं के समूह के समान स्वच्छ (तव) आपके (गुणाः) गुण (त्रिभुवनम्) तीनों लोकों को (लंघयन्ति) लांघ रहे हैं - सब जगह फैले हुए हैं,ये (एकम्) मुख्य(त्रिजगदीश्वरनाथम्) तीनों लोकों के नाथों के नाथ के आश्रित हैं (तान्) उनको (यथेष्टम्) इच्छानुसार (संचरतः) घूमते हुए (कः) कौन (निवारयति) रोकता है? कोई नहीं।

भावार्थ-चन्द्रमण्डल की किरणों के समान जिनके उत्तमोत्तम गुण तीन लोक में फैल रहे है, उन जिनेन्द्र देव का आश्रय लेने वाले कीर्ति आदि गुणों को इच्छानुसार घूमते हुए कोई रोक नहीं सकता है। अर्थात् आपके गुण तीन लोक में फैले हुए है।

प्रश्न - 1जिनदेव का आश्रय लेने की महिमा बताइये?

उत्तर- यहां जिनदेव के आश्रय की महिमा में दो आशय छिपे हैं-

1 - जिनेन्द्रदेव का आश्रय लेने वाले के यश, कीर्ति आदि गुण सर्वलोक में यत्र-तत्र फैल गए हैं उन्हें कोई भी रोक नहीं सकता।

2 - दूसरी विशेषता - जो भव्यात्मा जिनेन्द्र प्रभु के चरणों का आश्रय लेता है वह तीन लोक में कहीं भी घूमे उसे किसी प्रकार की विपत्ति नहीं आ सकती है। उसके भी गुण लोक में फैल जाते हैं। यश बढ़ताहै।