।। भगवान् के चरण कमलों के नीचे कमल रचना ।।
आचार्य मानतुंग कृत भक्तामर स्तोत्र
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उन्निद्र-हेम-नव-पंकज-पुंज-कांती,
पर्युल्लसत्रख-मयूख-शिखाभिरामौ।
पादौ पदानि तव यत्र जिनेन्द्र! धत्तः,
पद्मानि तत्र विबुधाः परिकल्पयन्ति ।।36।।
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अन्वयार्थ- (जिनेन्द्र) हे जिनेन्द्र देव (उन्निद्रहेमनवपंजक-पुंज-काती) खिले हुए स्वर्ण के नवीन कमल समूह के समान है कांति जिनकी ऐसे तथा (पर्युल्लसन्नखमसूखाशिखाभिरामौ) सब ओर से शोभायमान नखों की किरणों के अग्रभाग से सुन्दर (तव) आपके (पादौ) चरण (यत्र) जहां (पदानि) कदम (धत्तः) रखते हैं (तत्र) वहां (विबुधाः) देव (पद्मानि) कमलों को (परिकल्पयन्ति) रच देते हैं।

भावार्थ-हे जिनेन्द्र! आप जब धर्मोपदेश के लिए आर्य क्षेत्रों में विहार करते हैं तब देव लोग आपके चरणों के नीचे कमलों की रचना करते जाते हैं।

प्रश्न - 1 तीर्थंकर विहार करते हैं क्या?

उत्तर- हां, तीर्थंकर भव्य जीवों के कल्याणार्थ, हितोपदेश देने के लिए आर्य क्षेत्रों में विहार करते हैं।

प्रश्न - 2 भगवान् का विहार कहां और कैसे होता है? देवगण कितने कमलों की रचना करते हैं?

उत्तर- विहार करते समय पृथ्वी से अधर चलते हैं तथा देवगण 225 कमलों की (स्वर्णमयी) रचना रचते जाते हैं।