।। दिव्यध्वनि प्रातिहार्य ।।
आचार्य मानतुंग कृत भक्तामर स्तोत्र
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स्वार्गापवर्ग-गम-मार्ग-विमार्गणेष्टः,
सद्धर्म-तत्व-कथनैक-पटुस्त्रिलोक्याः।
दिव्यध्वनिर्भवति ते विशदार्थ - सर्व-
भाषा-स्वभाव-परिणाम-गुणैः - प्रयोज्यः ।।35।।
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अन्वयार्थ-(ते) आपकी (दिव्यध्वनिः) दिव्यध्वनि (स्वर्गापवर्गगम- मार्गविमर्गणेष्टः) स्वर्ग और मोक्ष को जाने वाले मार्ग को खोजने के लिए इष्ट (त्रिलोक्याः) तीन लोक के जीवों को (सद्धर्मतत्वकथनैकपटुः) समीचीन धर्मतत्व के कथन करने में अत्यंत समर्थ और (विशदार्थसर्व-भाषास्वभावपरिणामगुणैः प्रयोज्यः) स्पष्ट अर्थवाली सम्पूर्ण भाषाओं में परिवर्तित होने वाले स्वाभाविक गुण से सहित (भवति) होती है।

भावार्थ- हे स्वामिन्! आपकी दिव्यध्वनि (वाणी) स्वर्ग और मोक्ष का रास्ता बताने वाली है, सब जीवों को हित का उपदेश देने में समर्थ, स्पष्ट अर्थ वाली एवं सब भाषाओं में बदल जाती है।

प्रश्न - दिव्यध्वनि की विशेषताएं बताइये?

उत्तर- भगवान् की दिव्य वाणी की विशेषताएं-

1 - स्वर्ग और मोक्ष का रास्ता बताने वाली होती है।

2 - सब जीवों को हित का उपदेश देने में समर्थ है।

3 - एक ‘ओंकार’ अक्षर रूप होने परभी जो जिस भाषा का जानकर है, आपकी दिव्यध्वनि उसके कानों के पास पहुंचकर उसी भाषाा रूप में बदल जाती है।