अन्वयार्थ-(त्रिदशांगताभिः) देवांगनाओं के द्वारा (यदि) यदि (ते) आपका (मनः) मन (मनाक् अपि) थोड़ा भी (विकारमार्गम्) विकार भाव को (न नीतम्) प्राप्त नहीं करया गया (तर्हि) तो (अत्र) इस विषय में (चित्रम् किम्) आश्चर्य ही क्या है? (चलिताचलेन) पर्वतों को हिला देने वाली (कल्पानत-काल-मरूता) प्रलयकाल की पवन के द्वारा (किम्) क्य (कदाचित्) कभी (मन्दराद्रिशिखरम्) मेरू पर्वत का शिखर (चलितम्) हिलाया गया है? अर्थात् नहीं।
भावार्थ-हे नाथ! जिस प्रकार प्रलयकाल की प्रचण्ड हवा के द्वारा मेरू पर्वत हिलाया नहीं जा सकता है, उसी प्रकार स्वर्ग की देवांगनाओं के हाव-भावों के द्वारा आपका मन-सुमेरू भी चलायमान नहीं किया जा सकता है।
प्रश्न - 1देवांगनाओं के द्वारा भगवान् का मन विकार को प्राप्त क्यों नहीं हो सका?
उत्तर- 1. भगवान् का धैर्य अतुल है। 2. आपने मन को जीत लिया है।
प्रश्न - 2 दुनिया में आश्चर्य क्या है?
उत्तर- देवांगनाओं के द्वारा वीतराग प्रभु आदिनाथ का मन चलायमान नहीं हुआ- इसमें कोई आश्चर्य नहीं है, यदि चलायमान हो जाता तो आश्चर्य था।
प्रश्न - 3 संसारी प्राणियों को किसने जीव लिया है?
उत्तर- संसारी प्राणियों को कामदेव ने जीत लिया है।
प्रश्न - 4 कामदेव को किसने जीता था?
उत्तर- समस्त संसारियों को जीतने वाले कामदेव को जिनेन्द्र भगवान् आदिनाथ ने जीता है।
प्रश्न - 5 जिन किनको कहते हैं?
उत्तर- जिनने कामदेव को जीतकर इन्द्रिय विषय और कषायों को जीता है उनको जिन कहते हैं। ‘‘जीते सो जिन’’।