।। सकल भय विनाशन ।।
आचार्य मानतुंग कृत भक्तामर स्तोत्र
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मत्तद्विपेन्द्र-मृगराज-दवानलाहि-
संग्राम-वारिधि-महोदर-बंधनोत्थं।
तस्याशु नाशमुपयाति भयं भियेव,
यस्तावकं स्वतमिमं मतिमानधीते।।47।।
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अन्वयार्थ- (यः) जो (मतिमान) बुद्धिमान मनुष्य (तावकम्) आपके (इमम्) इस (स्तवम्) स्तवन को (अधीते) पढ़ता है (तस्य) उसका (मत्तद्विपेन्द्र-मृगराज-दवानलाहि संग्राम-वारिधि-महोदर-बन्धनोत्थम्) मत्त हाथी, सिंह, नवग्नि, सांप, युद्ध, समुद्र, जलोदर और बन्धन आदि से उत्पन्न हुआ (भयम्) डर (भिया इव) मानों भय से ही (आशु) शीघ्र (नाशम्) विनाश को (उपयाति) प्राप्त हो जाता है।

भावार्थ- भावार्थ- हे प्रभो, आपका स्तवन कररने से सब तरह के भय नष्ट हो जाते हैं।