।। समुद्र उल्लंघन ।।
आचार्य मानतुंग कृत भक्तामर स्तोत्र
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अम्भौनिधौ क्षुभित-भीषण-नक्रचक्र-
पाठीन-पीठ-भय-दोल्वण-वाडवाग्नौ।
रंगतरंग-शिखर-स्थित-यान-पात्रा-
स्त्रासं-विहाय भवतः स्मरणात् व्रजन्ति।।44।।
jain temple453

अन्वयार्थ-(क्षुभित-भीषण नक्र-चक्र पाठीनपीठभयदोल्वणवाड वाग्नौ) क्षोभ को प्राप्त हुए भयंकर नाकुओं के समूह और मछलियों के भय पैदा करने वाले तथा विकराल है वडवानल जिसमें ऐसे (अम्भोनिधौ) समुद्र में (रंगतरंगशिखरस्थितयानपात्राः) चंचल लहरों के अग्रभाग पर स्थित है जहाज जिनका ऐसे मनुष्य (भवतः) आपके (स्मरणात्) स्मरण से (त्रासम्) डर को (विहाय) छोड़कर (व्रजन्ति) गमन करते हैं।

भावार्थ- हे भगवन् जो आपका स्मरण् करते हैं वे तूफान के समय भी समुद्र में निडर होकर यात्रा करते हैं।

प्रश्न -1 भयानक तूफान युक्त समुद्र में निडर होकर यात्रा कौन कर सकता है? उदाहरण दीजिये?

उत्तर - समुद्र के चंचल लहरों के अग्रभाग पर जिसका जहाज है तूफान बहुत तेज है, ऐसे समय में भी जो आपके नाम का आश्रय लेता है उसकी नाव पार हो जाती है।

श्रीपाल कोटीभट्ट राजा थे। एक सेठ ने उन्हें धोखे से मायाचारी करके समुद्र में फेंक दिया। विशाल समुद्र बीचोंबीच गिरे श्रीपाल ने एकाग्रचित्त होकर प्रभु-भक्ति में अपना मन लगाया तभी वे किनारे को प्राप्त हुए। तपस्या करके उसी भाव से मोक्ष चले गये।