अन्वयार्थ- (उद्भूतभीषण-जलोदरभार-भुग्नाः) उत्पन्न हुए भयंकर जलोदर-रोग के भार से झुके हुए। (शोच्याम् दशाम्) शोचनीय अवस्था को (उपगताः) प्राप्त और (च्युतजीविताशाः) छोड़ दी है जीवन की इच्छा जिन्होंने ऐसे (मात्र्या) मनुष्य (त्वत्पादपंकज रजोऽमृतदिग्धदेहा सन्तः) आपके चरणकमलों की धूलिरूपअ मृत से लिप्त शरीर होते हुए (मकरध्वजतुल्यरूपाः) कामदेव के समान रूपवाले (भन्ति) हो जाते है।
भावार्थ- हे नाथ! जो आपके चरणों का ध्यान करता है उसका भयंकर जलोदर रोग दूर हो जाता है।
प्रश्न -1 भगवान् के ध्यान का फल बताइये?
उत्तर - जो भव्यात्मा जिन भगवान् के चरणों का ध्यान करता है उसके जलोदरादि भयंकर रोग दूर हो जाते हैं।
प्रश्न -2 उदाहरण दीजिये?
उत्तर - वादिराज मुनिराज के सारे शरीर में कुष्ठ रोग हो गया। उन्होंने अपने मनरूपी सिंहासन पर आपको विराजमान किया। प्रभु के ध्यान में लीन हो गये। ध्यान के प्रभाव से सारा शरीर कंचनमयी बन गया।