अन्वयार्थ-(यस्य) जिस (पुंसः) पुरूष के (हृदि) हृदय में (त्वन्नामनागदमनी) आपके नामरूपी नागदमनी-नागदौन औषधि (अस्ति) मौजूद है (सः) वह पुरूष (रक्तेक्षणम्) लाल-लाल आंखों वाले (समदकोकिलकण्ठनीलम्) मदयुक्त कोयल के कण्ठ की तरह काले (क्रोधद्धतम्) क्रोध से उद्दण्ड और (उत्फणम्) ऊपर को फण उठाये हुए (आपतन्तम्) सामने आने वाले (फणिनम्) सांप को (निरस्तशंकः सन्) शंकारहित होता हुआ (क्रमयुगेण) दोनों पांवों से (आक्रामति) लांघ जाता है।
भावार्थ- हे प्रभो! जो आपके नाम का स्मरण करता है,भयंकर सांप भी उसका कुछ बिगाडत्र नहीं सकता है।