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|| जिन-वचन ||
विभूसा इत्थिसंसग्गी पणीयरसभोयणं ।
नरस्स त्तगवेसिस्स विसं तालउडं जहा ॥
Personal adornment, contact with women, and very rich food are like deadly poison named Talput for a person who is seeking self-realisation.
आत्मगवेषी पुरुष के लिए विभूषा, स्त्री का संसर्ग और स्वादिष्ट भोजन, तालपुट विष के समान हैं ।
चित्तभित्तिं न निज्झाये नारिं वा सुअलंकियं ।
भक्खरं पिव दट्ठणं दिठिं पडिसमाहरे ॥
A monk should never stare at a well-dressed woman or even at a painting of a woman on a wall. He should immediately withdraw his glance just as a glance at the midday sun is immediately withdrawn.
मुनि आभूषणों से सुसज्जित नारी को या दीवार पर चित्रित नारी को टकटकी लगाकर न देखे । उन पर दृष्टि पड़ भी जाये तो उसे ऐसे खींच ले जैसे मध्याह्न के सूर्य पर पड़ी हुई दृष्टि स्वयं खिंच जाती है ।
आयावयाही चय सोगुमल्लं कामे कमाही कमियं खु दुक्खं ।
छिंदाहि दोसं विणएज्ज रागं एवं सुही होहिसि संपराए ॥
Give up tenderness and strengthen yourself with penance. If you control desires, miseries will run away. Get rid of faults and cut off attachment. Thus you will be happy in this worldly life.
तू तप कर और सुकुमारता का त्याग कर । तू कामवासना का अतिक्रम कर । इस से दुःख स्वयं चला जायेगा । दोष को छिन्न कर और राग भाव को दूर कर । ऐसा करने से ही तू संसार में सुखी होगा ।
सुरं वा मेरगं वा वि अन्नं वा मज्जगं रसं ।
ससक्खं न पिबे भिक्खू जसं सारक्खमप्पणो ॥
A monk who is keen to look after his own social prestige should never drink wine, liquor or any such intoxicating substance with his self as a witness.
अपने यश का संरक्षण करनेवाला मुनि सुरा, मेरग (महुए की शराब) या अन्य किसी प्रकार के मादक रस का, आत्म-साक्षी से पान न करे ।
हत्थपायपडिच्छिन्नं कण्णनासविगप्पियं ।
अवि वाससइ नारिं बंभयारी वियज्जए ॥
A person practising celibacy should avoid privacy with even a woman whose hands, feet, ears and nose are cut off and who may be a hundred years of age.
जिस के हाथ-पैर कटे हुए हों, नाक और कान छिन्न हों वैसी सो वर्ष की बूढ़ी नारी के साथ भी ब्रह्मचारी एकान्त में न रहे ।
खवेत्ता पूव्वकम्माइं संजमेण तवेण य ।
सिद्धिमग्गमणुप्पता ताइणो परिनिव्वुड ॥
Having destroyed all previous Karmas through self-control and penance, monks reach the path of liberation and attain Nirvana.
संयम और तप द्वारा पूर्व-संचित कर्मों का क्षय कर के मुनि, सिद्धि-मार्ग को प्राप्त कर परिनिर्वृत (मुक्त) होते हैं ।
जइ तं काहिसि भावं जा जा दच्छिसि नारिओ ।
वायाइद्धो व्व हडो अट्ठियप्पा भविस्ससि ।।
If you think of enjoying sexual pleasure with every woman you see, you will become unsteady like the Hada plant, shaken by the breeze.
जो तू स्त्रियों को देखकर उनके प्रति कामवासना का भाव करता रहेगा तो तू वायुसे आहत हड़ वनस्पति की तरह अस्थिरात्मा हो जायेगा ।
तेणे जहा संघिमुहे गहीए सकम्मणा कच्चइ पावकारी ।
एवं पया ! पेच्च इहं च लोए कडाण कम्माण न मोक्खु अस्थि ।।
When a thief is caught while breaking into a house, he is punished for the sin committed. Similarly, all living beings have to bear the fruits of their Karmas, either in this life or in the next life. No one can escape from the results of the Karmas done.
जैसे सेंध लगाते हुए पकड़ा गया चोर अपने कर्म के फल भोगता है उसी प्रकार जीव को अपने कर्मों का फल इस लोक और परलोक में भोगना पडता है । किए हुए कर्मों का फल भोगे बिना छुटकारा नहीं होता।
कसिणं पि जो इमं लोयं पडिपुन्नं दलेज्ज एक्कस्स ।
तेणावि से ण संतुस्से इइ दुप्पूरए इमे आया ॥
Even if the whole rich world is given to one man, he will not be satisfied with that. It is extremely difficult to get all the desires of a man fulfilled.
यदि कोइ किसी को समृद्धि से परिपूर्ण यह पूरा लोक भी दे दे, तो भी वह उस से संतुष्ट नहीं होगा । जीव की तृष्णा इतनी दुष्पूर होती है ।
अहे वयइ कोहेणं माणेणं अहमा गइ ।
माया गइपडिग्घाओ लोहाओ दुहओ भयं ॥
By anger one gets the lowest type of life (i.e. Narak-gati). By ego one gets the low type of life. Deceit becomes a hindrance to a better state of life. Greed endangers this as well as the next life.
क्रोध से मनुष्य अधोगति (नरकगति) में जाता है । मान से अधम गति प्राप्त होती है । माया से शुभ गति का विनाश होता है । लोभ से इस लोक में और परलोक में भय होता है ।
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