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|| जिन-वचन ||
पडिणीयं च बुद्धाणं वाया अदुव कम्मुणा ।
आवी वा जइ वा रहस्से नेव कुज्जा कयाइ वि ।।
One should never act either by words or by deeds, either publicly or privately, in a manner which is not agreeable to wise men.
वचन से या कर्म से, प्रगट में या एकान्त में, ज्ञानी पुरुषों के प्रतिकूल आचरण कभी भी न करें ।
जे केइ सरीरे सत्ता वण्णे रूवे य सव्वसो ।
मणसा कायवक्केणं सव्वे ते दुक्खसंभवा ।।
All those who are totally attached to the body, complexion and beauty, in thought, words and deeds, are ultimately creating miseries for themselves.
जो मन, वचन और काया से, शरीर, वर्ण और रूप में सर्वश: आसक्त होते हैं वे सभी अपने लिए दुःख उत्पन्न करते हैं ।
जरामरणवेगेणं वुज्झमाणाण पाणिणं ।
धम्मो दीवो पइट्ठा य गई सरणमुत्तमं ।
Religion itself is an island, a resting place, strength and the best shelter for living beings being swept away by forceful currents in the form of old age and death.
जरा और मृत्युरूपी जलप्रवाह में वेग से बहते हुए प्राणियों के लिए धर्म ही द्वीप, प्रतिष्ठान (आश्रयस्थान), गति और उत्तम शरण है।
कसाया अग्गिणो वुत्ता सुयसीलतवो जलं ।
सुयधाराभिहया संता भिन्ना हु न डहति मे ॥
Passions (anger, ego, deceit and greed) are called fire. Knowledge, self-control and penance are called water. The flames of fire do not burn me because they are showered with the water of scriptural study.
कषाय (क्रोध, मान, माया और लोभ) को अग्नि कहा गया है । श्रुत, शील और तप जल हैं । श्रुतरूपी जल की धारा से छिड़के जाने के कारण शीत और छिन्नभिन्न हुई वे ज्वालाएँ मुझे नहीं जलातीं ।
निम्ममो निरहंकारो निस्संगो चत्तगारवो ।
समो अ सव्वभूएसु तसेसु थावरेसु य ॥
A monk should be free from possessiveness, ego, companionship and attachment. He should treat all living beings, whether animate or inanimate with equanimity.
साधु ममत्व-रहित, अहंकार-रहित, निस्संग, और गारव (आसक्ति) का त्यागी होता है । वह त्रस और स्थावर सभी जीवों में समभाव रखनेवाला होता है ।
लाभालाभे सुहे दुक्खे जीविए मरणे तहा ।
समो निंदापसंसासु तहा माणावमाणओ ॥
A monk should maintain equanimity on the occasions of gain or loss, happiness or misery, life or death, censure or praise and honour or dishonour.
लाभ-अलाभ, सुख-दु:ख, जीवन-मरण, निंदा-प्रशंसा और मान-अपमान के प्रसंग में मुनि समत्व धारण करे।
परिजूरइ ते सरीरयं केसा पंडुरया हवंति ते ।
से सोयबले य हायई समयं गोयम । मा पमायए ।।
Your body is decaying. Your hair is becoming grey. Your strength of hearing is decreasing. Therefore, O Gautama ! do not be careless even for a moment.
तेरा शरीर जीर्ण हो रहा है । तेरे केश सफेद होते जा रहे हैं । तेरे श्रोत्र का बल क्षीण हो रहा है । इस लिए हे गौतम ! तू समय मात्र के लिए भी प्रमाद न कर ।
अबले जह भारवहए मा मग्गे विसमे वगाहिया ।
पच्छा पच्छाणुतावए समयं गोयम ! मा पमायए ।
A weak person carrying a heavy burden repents for taking an uneven road. Similarly, you will repent if you choose a wrong path. Therefore, O Gautama ! do not be careless even for a moment.
निर्बल भारवाहक की भाँति विषम मार्ग में मत जा, क्योंकि विषम मार्ग में जानेवाला बाद में पछताता है । इस लिए हे गौतम ! तू समय मात्र के लिए भी प्रमाद न कर ।
कुसग्गे जह ओसबिन्दुए थोवं चिट्ठइ लम्बमाणए ।
एवं मणुयाण जीवियं समयं गोयम । मा पमायए ।
A drop of a dew remains suspended on the tip of a blade of grass just for a moment. Human life is also like that. Therefore, O Gautama ! do not be careless even for a moment.
कुश की नोक पर लटकता हुआ ओस-बिन्दु थोडी ही देर टिकता है; वैसा ही मनुष्य जीवन भी है । इस लिए हे गौतम ! तू समय मात्र के लिए भी प्रमाद न कर ।
तिण्णो हु सि अण्णवं महं किं पुण चिट्ठसि तीरमागओ ।
अभितुर पारं गमित्तए समयं गोयम ! मा पमायए ।
You have nearly crossed the great ocean. Why are you then standing, having reached the shore ? Be quick to cross over it. O Gautama ! do not be careless even for a moment.
तू महान समुद्र को पार कर गया । अब किनारे आ कर क्यों खड़ा है ? उस पार पहुँचने के लिए जल्दी कर । हे गौतम ! तू समय मात्र के लिए भी प्रमाद न कर ।
समं च संथवं थीहिं संकहं च अभिक्खणं ।
बंभचेर रओ भिक्खू णिच्चसो परिवज्जए ।
A monk interested in observing celibacy should always avoid the company of women and also frequent conversation with them.
ब्रह्मचर्य में रत रहने वाला साधु स्त्रियों के साथ परिचय का और बारबार वार्तालाप का सदा त्याग करे ।
उवलेवो होइ भोगेसु अभोगी नोवलिप्पई ।
भोगी भमइ संसारे अभोगी विप्पमुच्चई ।।
There is stickiness in pleasures. One who is not after pleasures does not get stuck up. A pleasure-seeker wanders in the wordly life. One who renounces pleasures gets liberated.
भोगों में उपलेप होता है । अभोगी लिप्त नहि होता । भोगी संसार में भ्रमण करता है । अभोगी संसार से विमुक्त हो जाता है।
लखूण वि उत्तमं सुई सद्दहणा पुणरावि दुल्लहा ।
मिच्छत्त निसेवए जणे समयं गोयम मा पमायए ॥
Even after getting the knowledge of best religion, it is very difficult to have firm faith in it. Most of the people have wrong belief. Therefore O Gautam ! do not be careless even for a moment.
उत्तम धर्म का श्रवण करने पर भी उस में श्रद्धा होना अधिक दुर्लभ है । बहुत सारे लोग मिथ्यात्व का सेवन करने वाले होते हैं । इस लिए हे गौतम ! तू समय मात्र के लिए प्रमाद न कर ।
एवं भवसंसारे संसरइ सुभासुभेहिं कम्मेहिं ।
जीवो पमायबहुलो समयं गोयम मा पमायए ।
Thus a living being, full of carelessness, moves in this world of life and death according to his good or bad deeds. Therefore O Gautam ! do not be careless even for a moment.
इसी प्रकार प्रमाद से भरा हुआ जीव शुभ और अशुभ कर्मों के अनुसार भव रुप संसार में भ्रमण करता है । इस लिए हे गौतम । तू समय मात्र के लिए प्रमाद न कर ।
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