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|| जिन-वचन ||
जे इह सायाणुगा नरा अज्झोववन्ना कामेहिं मुच्छिया ।
किवणेण समं पगब्भिया न वि जाणंति समाहिमाहियं ।।
Those people who are only after pleasures and comforts in this world and are fully absorbed in sensual enjoyment, are reckless like the miserable persons. They do not know the path of spiritual bliss exhorted by the wise.
इस संसार में जो मनुष्य सुख-सुविधा के पीछे लगे हुए हैं, कामभोग में मूर्छित हैं, इन्द्रियों से पराजित दीन पुरुष की तरह धृष्टता से काम--सेवन करते हैं, वे, ज्ञानी पुरुषों के बताये समाधिमार्ग को नहीं जानते ।
अधुवं जीवियं नच्चा सिद्धिमग्गं वियाणिया ।
विणियट्टेज भोगेसु आउं परिमियमप्पणो ।।
Life is not permanent. It is limited. Knowing this and also having known the path of liberation, one should abstain from material peasures.
जीवन क्षणभंगुर है; अपनी आयु परिमित है; ऐसा जानकर सिद्धिमार्ग का ज्ञान प्राप्त कर के भोगों से निवृत्त हो जा ।
सक्का सहेउं आसाए कंटया अओमया उच्छहया नरेणं ।
अणासए जो उ सहेज्ज कंटए वईमए कण्णसरे स पुज्जो ॥
An enthusiastic person will be prepared to bear even the torture of iron nails to get wealth or some other reward, but a person who bears the tortue of nail-like words without any expectation is indeed respectable.
उत्साही मनुष्य घन आदि की आशा में लोहमय कांटों को सहन कर सकता है; परन्तु जो किसी प्रकार की आशा रखे बिना कानों में प्रवेशते हुए वचन रूपी कांटों को सहन करता है वह पूज्य है ।
मुसावाओ य लोगम्मि सव्वसाहूहिं गरहिओ ।
अविस्सासो य भूयाणं तम्हा मोसं विवज्जए ॥
Telling a lie is condemned by all the saints in the world. It creates a world of distrust for people. Therefore, one should avoid telling a lie.
इस लोक में मृषावाद (असत्य वचन) सब साधुओं द्वारा निंदित है और वह प्राणियों के लिए अविश्वसनीय है । इस लिए असत्य वचन का त्याग करें ।
न बाहिरं परिभवे अत्ताणं न समुक्कसे ।
सुयलाभे न मज्जेज्जा जच्च तवसि बुद्धिए ।।
Never hate or humiliate others and never show your superiority. Never boast of your scriptural knowledge, gains, caste or community, penance and intellect.
औरों का तिरस्कार न करें । अपना उत्कर्ष न दिखाएँ । श्रुतज्ञान, लाभ, जाति, तप और बुद्धि का मद न करें।
अवण्णवायं च परम्मुहस्स पचक्खओ पडिणीयं च भासं ।
ओहारिणिं अप्पियकारिणिं च भासं न भासेज्ज सया स पुज्जो ।।
Those who do not backbite others, use violent words in their presence and who do not speak uncompromising or unpleasant language are always respected.
जो पीछे से निंदा नहीं करता, जो किसीके सामने विरोधी वचन नहीं कहता, जो निश्चयकारी (आग्रही) और अप्रिय-कारिणी भाषा नहीं बोलता वह सदा पूज्य है ।
तवतेणे वइतेणे रूवतेणे य जे नरे ।
आयार भावतेणे य कुव्वई देवकिब्बिसं ।
A person who deceives or beguiles others in the matters of penance, speech, complextion, behaviour and feelings becomes a Kilbish, i.e. a deity of an inferior category, in the next birth.
जो मनुष्य तप का चोर, वाणी का चोर, रूप का चोर, आचार का चोर और भाव का चोर होता है वह मृत्यु के बाद किल्बिषिक (निम्न कोटिका) देव होता है ।
तहेव डहरं व महल्लगं वा इत्थी पुमं पव्वइयं गिहिं वा ।
नो हीलए नो वि य खिसएज्जा थंभं च कोहं च चए स पुज्जो ।
Whether a child or an elderly person, a man or a woman, a monk or a householder whoever he or she may be, but the one who neither backbites nor hates others and who neither loses temper nor becomes arrogant, commands respect.
बालक हो या वृद्ध, स्त्री हो या पुरुष, दीक्षित हो या गृहस्थ, जो निन्दा नहीं करता, तिरस्कार नहीं करता और गर्व तथा क्रोध का त्याग करता है वह पूज्य है ।
समावयंता वयणाभिधाया कण्णंगया दुम्मणियं जणंति ।
धम्मो त्ति किच्चा परमग्गसूरे जिइंदिए जो सहई स पुज्जो ॥
Attacks in the form of words pierce the ears and produce disgust in the mind, but those who are spiritually brave and have self-control bear all these, knowing that it is their religious duty to do so and this is why they become respectable.
सामने से आते हुए वचन के प्रहार कानों तक पहुँच कर मानसिक कष्ट उत्पन्न करते हैं । लेकिन जो धर्ममार्ग में शूर है, जितेन्द्रिय है और 'यह मेरा धर्म है' ऐसा मानकर सहन करता है वह पूज्य है ।
अंगपच्चंगसंठाणं चारुल्लवियपेहियं ।
इत्थीणं तं न निज्झाए कामरागविवड्ढणं ॥
A monk should abstain from staring at the physique or the parts of the body of women. He should not get interested in listening to their sweet words or should not give any attention to their amorous glances. He should not even think of all these, because they are likely to arouse his sex-instinct.
स्त्रियों के अंग, प्रत्यंग, सुंदर स्वरूप, मधुर वचन और नयन–कटाक्ष को न देखें और उनकी और ध्यान न दें, क्योंकि ये सब कामराग की वृद्धि करनेवाले हैं।
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