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|| जिन-वचन ||
धम्मो मंगलमुक्किठें अहिंसा संजमो तवो ।।
देवा वि तं नमसंति जस्स धम्मे सया मणो ॥
Religion is supremely auspicious. Non-violence, self-control and penance are its essentials. Even the gods bow down to him whose mind is always engaged in practising religion.
धर्म उत्कृष्ट मंगल है । अहिंसा, संयम और तप उस के मुख्य अंग हैं । जिस का मन सदा धर्म में लगा रहता है, उस को देव भी नमस्कार करते हैं।
से जाणमजाणं वा कटु आहम्मियं पयं ।
संवरे खिप्पमप्पाणं बीयं तं न समायरे ।
if knowingly or unknowingly an irreligious act is committed, one should immediately withdraw one's self from it and should ensure that such an act is not committed again.
जाने-अनजाने में कोई अधर्म कार्य कर बैठे, तो अपनी आत्मा को उस से तुरन्त हटा ले । फिर दूसरी बार वैसा कार्य न करे ।
सोच्चा जाणइ कल्लाणं सोच्चा जाणइ पावगं ।
उभयं पि जाणइ सोच्चं जं छेयं तं समायरे ।।
After listening to the scriptures, a person knows what is good and what is sinful. Thus, knowing both these through listening to the scriptures, one should practice what is beneficial.
धर्म सुनकर मनुष्य कल्याण क्या है यह जानता है और धर्म सुनकर ही पाप क्या है वह भी जानता है । इस तरह सुनकर ये दोनों जाने जाते हैं । उन में जो श्रेय है उसी का वह आचरण करे ।
जावंति लोए पाणा तस अदुव थावरा ।
तं जाणमजाणं वा न हणे न वि घायए ।
Knowingly or unknowingly one should not kill animate or inanimate living beings in this world and should not cause them to be killed by others either.
इस लोक में जितने भी त्रस और स्थावर जीव हैं उन का जाने-अनजाने में साधक हनन न करे और न कराए ।
गुणेहिं साहू अगुणेहिं साहू गेण्हाहि साहूगुण मुंच ऽ साहू ।
वियाणिया अप्पगमप्पएणं जो रागदोसेहिं समो स पुज्जो ।
A Person becomes a monk by virtues and a non-monk by vices. Therefore, develop all the virtues and be free from all the vices. Know your self through the Self. He who maintains equanimity in all the matters of attachment and hatred becomes worthy of respect.
गुणों से साधु होता है और अगुणों से असाधु । इस लिए साधु-गुणों को (साधुता को) ग्रहण करो और असाधुगुणों (असाधुता) का त्याग करो । आत्मा को आत्मा से जान कर जो राग और द्वेष में समभाव धारण करता है, वह पूजनीय हो जाता है ।
मुहत्तदुक्खा हु हवंति कंटया अओमया ते वि तओ सुउद्धरा ।
वायादुरुत्ताणि दुरुद्धराणि वेराणुबंधीणि महब्भयाणि ।।
When a sharp iron nail pricks the body, it can be easily removed; the pain does not last for a long time; but when a sharp nail in the from of hurtful words pricks, it cannot be easily removed; it creates enmity and generates fear.
लोहे का कांटा अल्प काल तक दु:ख-दायी होता है और वह शरीर से सहजतया निकाला जा सकता है। लेकिन दुर्वचनरूपी कांटा सहजतया नहीं निकाला जा सकता । वह वैर की परंपरा को बढ़ाता है और महाभयानक होता है ।
जा य सच्चा अवत्तव्वा सच्चामोसा य जा मुसा ।
जा या बुद्धयी णाइन्ना न तं भासेज्ज पण्णवं ।।
A wise man should not use such a language that is true but not worth speaking, is a mixture of truth and untruth, is untrue and that has been disapproved by the enlightened persons.
जो भाषा सत्य हो किंतु अवक्तव्य हो, जो सत्य और असत्य के मिश्रणवाली हो, जो असत्य हो और जो भाषा बुद्धों द्वारा वर्ण्य हो वैसी भाषा प्रज्ञावान साधक न बोले ।
वत्थगंधमलंकारं इत्थीओ सयणाणि य ।
अच्छंदा जे न भुंजंति न से चाइ त्ति वुच्चइ ॥
He who is not able to enjoy clothes, cosmetics, ornaments, women and beds, because the circumstances do not permit him, is not called a renouncer.
वस्त्र, गंध, अलंकार, स्त्री और शयन-आसनों का उपभोग, जो संजोग के कारण नहीं करता वह त्यागी नहीं कहलाता ।
जे य कंते पिए भोए लद्धे विप्पिट्ठि कुव्वई ।
साहीणे चयई भोए से हु चाइ त्ति वुच्चई ॥
He, who has turned his back on all the available pleasing and dear objects of enjoyment and has voluntarily renounced them is a true renouncer.
मनोहर और प्रिय भोग उपलब्ध होने पर भी जो उनकी ओर से पीठ फेर लेता है और स्वाधीनतापूर्वक भोगों को छोड़ता है वही त्यागी कहलाता है ।
सव्वे जीवा वि इच्छंति जीविउं न मरिज्जिउं ।
तम्हा पाणिवहं घोरं निग्गंथा वज्जयंति णं ॥
All living beings desire to live. Nobody likes to die. Therefore self-restraining persons refrain from the great sin of killing living beings.
सभी जीव जीना चाहते हैं, मरना नहीं । इस लिए निर्ग्रन्थ मुनि घोर प्राणीवध का परित्याग करते हैं ।
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