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|| जिन-वचन ||
चउरंगं दुल्लहं मत्ता संजमं पडिवज्जिया ।
तवसा धुयकम्मंसे सिद्धे हवइ सासए ।
Realizing that four things (viz human birth, listening to scriptures, faith in religion and strength to practise self-control) are difficult to obtain, one who observes selfcontrol and destroys all the past Karmas through penance, becomes Siddha for ever.
चार अंगों (मनुष्यजन्म, शास्त्रश्रवण, धर्म में श्रद्धा और संयम में पुरुषार्थ) को दुर्लभ समझ कर जीव संयम का स्वीकार करता है । फिर तपस्या द्वारा सभी कर्मों को नष्ट कर जीव शाश्वत सिद्धपद प्राप्त करता है।
जहा लाभो तहा लोभो लाभा लोभो पवड्ढई ।
दोमासकयं कज्जं कोडीए वि न निट्ठियं ॥
Where there is gain, there is greed; greed grows as one gains more. A work which could have been done with two grams of gold is then not done even with ten million grams of gold.
जैसे जैसे लाभ होता है वैसे वैसे लोभ होता है । लाभ से लोभ बढ़ता है । दो मासे सोने से पूर्ण होनेवाला कार्य करोड़ से भी पूर्ण नहीं होता ।
सुवण्णरुप्पस्स उ पव्वया भवे सिया हु केलाससमा असंखया ।
नरस्स लुद्धस्स न तेहि किंचि इच्छा हु आगाससमा अणन्तिया ॥
A greedy person is not satisfied even if he accumulates gold and silver worth numerous Kailas mountains because desire, like the sky, is endless.
कदाचित् सोने और चांदी के कैलास पर्वत समान असंख्य पर्वत मिल जाएँ तो भी लोभी मनुष्य को संतोष नहीं होता, क्योंकि इच्छा आकाश के समान अनंत है ।
अप्पा नदी वेयरणी अप्पा मे कूडसामली ।
अप्पा कामदुहा घेणू अप्पा मे नंदणं वणं ॥
The soul itself is the river Vaitarani. The soul is a Kutashalmali tree. The soul is Kama-duha (wish-fulfilling) cow and the soul is the Nandanavana (a park in paradise).
आत्मा ही वैतरणी नदी है और आत्मा ही कूटशाल्मली वृक्ष है । आत्मा ही कामदुधा धेनु है और आत्मा ही नंदनवन है ।
खणमेत्तसोक्खा बहुकालदुक्खा पकामदुक्खा अनिकाम सोक्खा ।
संसारमोक्खस्स विपक्खभूया खाणी अणत्थाण उ कामभोगा ।
Sensuous pleasures give temporary happiness but bring unhappiness for a long time; they give more unhappiness than happiness. They are great hindrances to emancipation and they are really a mine of misfortunes.
कामभोग क्षण मात्र सुख और चिरकाल दुःख देनेवाले हैं, बहुत दुःख और कम सुख देनेवाले हैं. कामभोग संसारमुक्ति के शत्रु हैं और अनर्थों की खान हैं ।
शरीरमाहु नाव त्ति जीवो वच्चइ नाविओ ।
संसारो अण्णवो वुत्तो जं तरंति महेसिणो ।
The body is called a boat; the soul is called a navigator; worldly life is called an ocean. The great sages cross this ocean.
शरीर को नौका, जीव को नाविक और संसार को समुद्र कहा गया है । महर्षि इसे तैर जाते हैं ।
अहिंसं सच्चं च अतेणयं च तत्तो य बंभं अपरिग्गहं च ।
पडिवज्जिया पंच महव्वयाई चरेज्ज धम्मं जिणदेसियं विदू ।।
A learned monk having adopted the five great vows of non-violence, truthfulness, non-stealing, celibacy and nonpossessivenss should practise the religion preached by the Jineshwara.
अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह-इन पांच महाव्रतों को अपना कर विद्वान मुनि जिनेश्वर कथित धर्म का आचरण करे ।
नाणेण जाणई भावे दंसणेण य सद्दहे ।
चरित्तेण न गिण्हाई तवेण परिसुज्जई ।।
One knows the nature of substances through knowledge, keeps faith in them by right Darshan, develops self-control by right Conduct and purifies the soul by Penance.
मनुष्य ज्ञान से पदार्थों को जानता है, दर्शन से श्रद्धा करता है, चारित्र से निग्रह करता है और तप से परिशुद्ध होता है ।
रागो य दोसो वि य कम्म बीयं कम्मं च मोहप्पभवं वदंति ।
कम्मं च जाई-मरणस्स मूलं दुक्खं च जाई-मरणं वयंति ॥
Attachment and hatred are seeds of Karma. Karma originates from delusion. Karma is the root cause of birth and death. Birth and death are called unhappiness.
राग और द्वेष, कर्म के बीज हैं । कर्म मोह से उत्पन्न होता है । कर्म जन्म-मरण का मूल है । जन्ममरण को दु:ख कहा गया है ।
जहा य अंडप्पभावा बलागा अंडं बलागप्पभवं जहा य ।
एमेव मोहायतणं खु तण्ह मोहं च तण्हायतणं वयंति ॥
Just as an egg gives birth to a crane and a crane lays an egg, in the same way delusion gives birth to desire and desire gives birth to delusion. This is said by the wise people.
जिस प्रकार बलाका अण्डे से उत्पन्न होती है और अण्डा बलाका से उत्पन्न होता है उसी प्रकार तृष्णा मोह से उत्पन्न होती है और मोह तृष्णा से उत्पन्न होता है । ज्ञानी पुरुषों ने ऐसा कहा है ।
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