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|| जिन-वचन ||
वरं मे अप्पा दंतो संजमेण तवेण य ।
मा हं परेहि दम्मंतो बंधणेहिं वहेहिं य ॥
It is better that I should restrain myself by self-control and penance rather than being subdued by others with fetters and violence.
संयम और तप के द्वारा मैं अपनी आत्मा का दमन करूं यही अच्छा है । अन्य लोग बंधन और वध के द्वारा मेरा दमन करें - इस से यह अच्छा है ।
आहच्च सवणं लद्धं सद्धा परम दुल्लहा ।
सोच्चा णेयाउणं मग्गं बहवे परिभस्सई ॥
Even after getting an opportunity to hear religious discourses, it is very difficult to have faith in religion. There are many who get lost even after being shown the right path.
कदाचित् धर्मश्रवण का अवसर पा लेने पर भी उस में श्रद्धा होना परम दुर्लभ है । धर्म की ओर ले जानेवाले सही मार्ग को जानकर भी बहुत लोग इस मार्ग से भ्रष्ट हो जाते हैं ।
अप्पाणमेव जुज्झाहि किं ते जुज्झेण बज्झओ ।
अप्पाणमेव अप्पाणं जइत्ता सुहमेहए ॥
Why are you fighting with external enemies ? Fight with your own self. One who conquers one's own self enjoys true happiness.
आत्मा के साथ ही युद्ध करो । बाहरी शत्रुओं से युद्ध करने से क्या लाभ ? आत्मा को आत्मा के द्वारा जीतनेवाला मनुष्य सुख पाता है ।
जो सहस्सं सहस्साणं संगामे दुज्जए जिणे ।
एगं जिणेज्ज अप्पाणं एस मे परमो जओ ॥
In war a man may defeat a million invincible enemies but conquering one's own self is the greatest victory.
जो मनुष्य दुर्जेय संग्राम में दस लाख योद्धाओं को पराजित करे, इस की अपेक्षा कोई अपने आप को जीते यही परम विजय है ।
जा जा वच्चइ रयणी न सा पडिनियत्तई ।
धम्मं च कुणमाणस्स सफला जंति राइओ ।
The nights which pass do not return. The nights of a religious person are successful.
जो जो रातें गुज़र जाती हैं, वे लौट कर नहीं आतीं । धर्म करनेवाले की रात्रियाँ सफल होती हैं ।
अप्पा कत्ता विकत्ता य दुक्खाण य सुहाण य ।
अप्पा मित्तममित्तं च दुप्पट्ठियसुपट्ठिओ ॥
The soul is the architect of one's happiness and unhappiness. Therefore, the soul on the right path is one's own friend and a soul on the wrong path is one's enemy.
आत्मा स्वयं ही दुःख और सुख की कर्ता है और उन का क्षय करनेवाली भी है । इस लिए सन्मार्ग पर चलनेवाली आत्मा मित्र है और उन्मार्ग पर चलनेवाली आत्मा शत्रु है ।
अप्पा चेव दमेयव्वो अप्पा हु खलु दुद्दमो ।
अप्पा दंतो सुही होई अस्सि लोए परत्थ य ॥
The self alone should be restrained, because it is most difficult to restrain the self. He who has restrained his self becomes happy in this world as well as in the next world.
अपनी आत्मा का ही दमन करना चाहीए, क्योंकि आत्मा ही दुर्दम्य है । अपनी आत्मा पर विजय पानेवाला ही इस लोक और परलोक में सुखी होता है ।
न लवेज्ज पुट्ठो सावज्जं न निरत्थं न मम्मयं ।
अप्पणट्ठा परट्ठा वा उभयस्संतरेण वा ॥
Even when asked by some one, a monk should not utter, for his own sake or for the sake of others or for the sake of both, sinful words, senseless words or heart-rending words.
किसी के पूछने पर भी साधु अपने लिए, अन्य के लिए या दोनों के लाभ के लिए भी सावध वचन न बोले, निरर्थक वचन न बोले और मर्मभेदी वचन न बोले ।
माणुस्सं विग्गहं लद्धं सुई धम्मस्स दुल्लहा ।
जं सोच्च पडिवज्जंति तवं खंतिमाहिंसयं ॥
Even after having been born as a human being, it is most difficult to get an opportunity to listen to true religious scriptures - listening to which makes one practise penance, forgiveness, and non-violence.
मनुष्य देह प्राप्त होने पर भी उस धर्म का श्रवण दुर्लभ है जिस को सुनकर मनुष्य तप, क्षमा और अहिंसा को अपना सके ।
सुइं च लद्धं सुद्धं च वीरियं पुण दुल्लहं ।
बहवे रोयमाणा वि नो य णं पडिवज्जई ॥
Even after hearing the sacred scriptures and having firm faith in them, it is very difficult to have enough strength to practise self-control. There are many who are interested in it, but are not able to do so for want of strength.
धर्मश्रवण करने पर और उस में श्रद्धा प्राप्त होने पर भी संयमपालन में पुरुषार्थ होना अत्यंत दुर्लभ है । धर्म में रुचि रखते हुए भी कई लोग उस के अनुसार आचरण नहीं करते ।
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