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|| जिन-वचन ||
कायगुत्तयाए णं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? कायगुत्तयाए संवरं जणयइ ।
संवरेणं कायगुत्ते पुणो पावासवनिरोहं करेइ ॥
O Bhagavan ! What does the soul achieve by controlling the body ? By controlling the body the soul achieves Samvara, i.e. cessation of Karma, and with Samvara, the soul, with body-control, controls the influx of sinful Karmas.
भन्ते ! काय-गुप्ति से जीव क्या प्राप्त करता है ? काय-गुप्ति से जीव संवर प्राप्त करता है । संवर से कायगुप्त जीव पापकर्म के आश्रवों का निरोध करता है।
सव्वेहिं भूएहिं दयाणुकंपी खंतिक्खमे संजयबंभयारी ।
सावज्जजोगं परिवज्जयंतो चरेज्ज भिक्खू सुसमाहिइन्दिए ।
A monk should have compassion for all beings. He should have forgiveness for all. He should restrain himself and observe celibacy. He should avoid all sinful activities. He should move about with control over his senses.
साधु सर्व जीवों के प्रति दयानुकंपावाला रहे । वह क्षमाभाव को धारण करनेवाला हो । वह संयमी और ब्रह्मचर्य का पालन करनेवाला हो । वह सावध योग का वर्जन करता हुआ, इन्द्रियों को संयम में रखते हुए विचरण करे ।
बहुं सुणेइ कण्णेहिं बहुं अच्छीहिं पेच्छई ।
न य दिठें सुयं सव्वं भिक्खू अक्खाउमरिहइ ।
A monk may hear many things with his ears and he may see many things with his eyes, but it is not proper for him to tell others everything that he may have heard or seen.
मुनि कानों से बहुत कुछ सुनता है और आंखों से बहुत कुछ देखता है । किन्तु आँखों से देखा हुआ और कानों से सुना हुआ सब कुछ औरों को बता देना उस के लिए उचित नहीं ।
अस्थि एगं धुवं ठाणं लोगग्गंमि दुरारुहं ।
जत्थ नत्थि जरा मच्चू वाहिणो वेयणा तहा ॥
There is one eternal place on the top of the cosmos where there is no old age, death, disease or pain. But it is very difficult to reach there.
लोक के अग्रभाग में एक ऐसा ध्रुव स्थान है, जहां वृद्धावस्था, मृत्यु, व्याधि और वेदना नहीं है । किन्तु वहां पहुँच पाना बहुत कठिन है ।
अलोलुए अक्कुहए अमायी अपिसुणे यावि अदीणवित्ती ।
नो भावए नो वि य भावियप्पा अकोउहल्ले य सया स पुज्जो ॥
Those who are not fond of different tastes, are not interested in showing miraculous tricks, are not deceitful, do not backbite others, do not show wretchedness, do not praise themselves or get themselves praised by others, and do not arouse undue curiosity among others, are respectable.
जो रसलोलुप नहीं होते, चमत्कार प्रदर्शित नहीं करते, माया नहीं करते, चुगली नहीं करते, दीनभाव से याचना नहीं करते, आत्मश्लाघा नहीं करते या करवाते और कुतूहल नहीं करते वे पूज्य हैं ।
मुसं परिहरे भिक्खू न य ओहारिणिं वए ।
भासादोसं परिहरे मायं च वज्जए सया ॥
A monk should never tell a lie and should not use categorical language. He should avoid faulty language and should always abstain from deceit.
मुनि असत्य का त्याग करे । वह निश्चयात्मक भाषा न बोले, भाषा के दोषों को छोड़े और माया का सदा त्याग करे ।
समरेसु अगारेसु संधीसु य महापहे ।
एगो एगिथिए सद्धि नेव चिट्टे न संलवे ॥
When a person practising celibacy is alone, he should neither stand nor talk, with a woman if she is also alone, in the temples of Cupid or in a lonely house or in a small street between two houses or even on a big public road.
ब्रह्मचारी, कामदेव के मंदिरों में, एकान्त घरों में, दो घरों के बीच की संधियों में और राजमार्ग में अकेली स्त्री के साथ अकेला न खड़ा रहे और न बात करे ।
अणुसासिओ न कुप्पेज्जा खंति सेवेज्ज पंडिए ।
खुड्डेहिं संसग्गि हासं कीडं च वज्जए ।
A learned disciple should not get upset at the strict discipline enforced by his preceptor. He should bear forgivness. He should avoid the company of inferior persons and keep himself away from jests and amusing behaviour.
पंडित शिष्य, गुरु के द्वारा अनुशासित होने पर क्रोध न करे, क्षमा को धारण करे, क्षुद्र व्यक्तियों से संसर्ग न करे और हास्य तथा क्रीडा न करे ।
मणपल्हाय जणणि कामरागविवड्ढणि ।
बंभचेररओ भिक्खू थीकहं तु विवज्जए ।
A monk who is interested in practising the vow of celibacy should always avoid such stories of women that would create excitement in mind and increase sexual desire.
ब्रह्मचर्य व्रत में रत रहने वाला मुनि चित्त को उत्तेजित और क्षुब्ध करनेवाली तथा कामराग बढ़ाने वाली स्त्रीकथा का वर्जन करे ।
विरई अबंभचेरस्स कामभोगरसन्नुणा ।
उग्गं महाव्वयं बंभं धारेयव्वं सुदुक्करं ॥
It is not easy for a person who knows about the pleasure of sex to abstain from it. To practise the great vow of celibacy wholeheartedly is really very difficult.
कामभोग का रस जानने वाले व्यक्ति के लिए अब्रह्मचर्य की विरति करना और उग्र ब्रह्मचर्य महाव्रत को धारण करना बहुत ही कठिन है ।
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