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|| जिन-वचन ||
अहिंसं सच्चं च अतेणगं च तत्तो य बंभं अपरिग्गहं च ।
पडिवज्जिया पंच महव्वयाणि चरिज्ज धम्मं जिणदेसियं विदू ॥
A wise monk should accept the five great vows, viz. Non-violence, Truth, Nonstealing, Celibacy and Non-acquisition and he should always practise the religion as preached by the Jinas.
ज्ञानी मुनि अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह – इन पाँच महाव्रतों को अपनाकर जिनेश्वर - उपदिष्ट धर्म का आचरण करे ।
इमं च मे अस्थि इमं च नत्थि इमं च मे किच्च इमं अकिच्चं ।
तं एवमेवं लालप्पमाणं हरा हरन्ति त्ति कहं पमाओ ।
While a man keeps on prattling, 'this is mine, this is not mine; I have done this; I have not done this', - the robbers (in the form of day and night) keep robbing him. How can one then be careless ?
'यह मेरा है और यह मेरा नहीं; यह मैंने किया है और यह मैंने नहीं किया ।' –इस प्रकार वृथा बकवास करते हुए मनुष्य को चोर (दिन और रात के रूप में) लूट रहे हैं । फिर प्रमाद क्यों किया जाये ?
जहा किंपागफलाणं परिणामो न सुंदरो ।
एवं भुत्ताण भोगाणं परिणामो न सुंदरो ॥
Just as the result of eating the beautiful Kimpaka fruit is not good, similarly, the result of enjoying worldly pleasures is not good.
जिस प्रकार सुंदर किम्पाक फल खाने का परिणाम सुंदर नहीं होता, उसी प्रकार भोगे हुए भोगों का परिणाम भी सुंदर नहीं होता।
सल्लं कामा विसं कामा कामा आसीविसोपमा ।
कामे य पत्थेमाणा अकामा जन्ति दोग्गइं ॥
Material pleasure are like thorns. Material pleasures are like poison. Material pleasures are like a poisonous serpent. People seeking pleasures get into an unhappy state of rebirth, without getting any of the pleasures.
कामभोग शल्य है । कामभोग विष है । कामभोग आशीविष सर्प के तुल्य है । कामभोग की इच्छा करनेवाले, उन को बिना प्राप्त किये ही दुर्गति को प्राप्त होते हैं ।
अच्चेइ कालो तूरन्ति राइओ न यावि भोगा पुरिसाण निच्चा ।
उविच्च भोगा पुरिसं चयन्ति दुमं जहा खीणफलं व पक्खी ।
Time flows on. Nights go by quicky. Human pleasures are not permanent. Just as birds abandon a tree the fruits of which are over, similarly pleasures forsake weak men.
काल गुज़र रहा है । रात्रियाँ दौड़ रही हैं । मनुष्यों के भोग भी नित्य नहीं हैं । जैसे क्षीण फल वाले वृक्ष को पक्षी छोड़ देते हैं, वैसे ही अशक्त मनुष्य को कामभोग छोड़ देते हैं ।
असंखयं जीविय मा पमायए जरोवणीयस्स हु नत्थि ताणं ।
एवं विजाणाहि जणे पमत्ते किण्णू विहिंसा अजया गहिन्ति ।
Life once torn cannot be stitched up again. There is no protection against old age. Therefore, knowing this, do not be careless. Those who are careless, those who kill living beings and those who do not have self-control, whose refuge will they seek ?
तूटा हुआ जीवन साँधा नहीं जा सकता । बुढ़ापा आने पर कोई शरण नहीं होती । इस लिए प्रमाद मत करो । प्रमादी, हिंसा करनेवाले और असंयमी मनुष्य किस की शरण लेंगे?
दुल्लहे खलु माणुसे भवे चिरकालेण वि सव्वपाणिणं ।
गाढा य विवाग कम्मुणो समयं गोयम । मा पमायए ।
It is very difficult for all living beings to get human birth even after a very long time, because the results of Karmas are very hard. Therefore, O Gautama ! do not be careless even for a moment.
सर्व प्राणियों को, चिरकाल के बाद भी मनुष्य-जन्म मिलना दुर्लभ है क्यों कि कर्म के विपाक गाढ़ होते हैं । इस लिए हे गौतम ! तू समय मात्र का भी प्रमाद न कर ।
इह जीवियमेव पासहा तरुणे वाससयस्स तुट्टई ।
इत्तरवासे य बुज्झह गिद्धनरा कामेसु मुच्छिया ।।
Look at human life in this world ! It may be over either early in youth or after a hundred years. You should know that this life is an abode for very short duration. However, the greedy people still remain engrossed in wordly pleasures.
इस संसार में मनुष्य-जीवन को देखो । वह तरुण अवस्था में या सो वर्ष के आयुष्य पर भी तूट जाता है। इस जीवन को कुछ दिनों का निवास समझो । फिर भी लोभी मनुष्य कामभोग में मूर्छित रहते हैं ।
सुत्तेसु यावी पडिबुद्धजीवी न वीससे पंडिए आसुपन्ने ।
घोरा मुहुत्ता अबलं सरीरं भारंडपंखी व चरे ऽ प्पमत्तो ।।
When ordinary people sleep in delusion, a wise person who remains watchful, will not put trust in carelessness. Time is horrible and the body is fragile. Therefore, you should move about carefully like a Bharanda bird.
मोह निद्रा में सोये हुए लोगों के बीच भी जाग्रत रहने वाला बुद्धिमान पंडित, प्रमाद में विश्वास न करे । काल भयंकर है । शरीर निर्बल है । इस लिए तू भारंड पक्षी की भाँति अप्रमत्त होकर विचरण कर ।
जावन्त विज्जापुरिसा सव्वे ते दुक्खसंभवा ।
लुप्पंति बहुसो मूढा संसारंमि अणंतए ॥
All those who have no knowledge are likely to suffer misery. Ignorant persons get afflicted again and again in this endless world.
जितने भी अविद्यावान मनुष्य हैं वे सब दुःखों के पात्र होते हैं । इस अनन्त संसार में वे मूढ़ मनुष्य बारबार पीडित होते हैं ।
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