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|| जिन-वचन ||
अह पंचहि ठाणेहिं जेहिं सिक्खा न लब्बई ।
थंभा कोहा पमाएणं रोगेणा ऽ ऽ लस्सएण य ॥
Ego, anger, negligence, disease and laziness are the five objects for not getting knowledge.
अहंकार, क्रोध, प्रमाद, रोग और आलस्य – इन पांच के कारण शिक्षा प्राप्त नहीं होती ।
सीहं जहा खुड्डमिगा चरंता ति परिसंकमाणा ।
एवं तु मेहावि समिक्ख धम्म दूरेण पावं परिवज्जएज्जा ।।
Just as the small animals like deer etc., always keep themselves away from a lion on account of fear, similarly, a wise man, discerning true religion, should always keep himself away from committing sinful acts.
जिस तरह जंगल में हरिण आदि छोटे प्राणी भय से शंकित होकर सिंह से दूर रहते हैं, इसी तरह मेधावी पुरुष धर्मतत्त्व की समीक्षा कर के पापकार्य से दूर रहते हैं ।
वेराई कुव्वई वेरी तओ वेरेहिं रज्जती ।
पावोवगा य आरंभा दुक्खफासा य अंतसो ।।
A revengeful person goes on inflicting injury on others and then takes delight in doing injury. But all such activities are sinful and ultimately result in miseries.
वैरी मनुष्य वैर करता है और बाद में वैरवृद्धि कर के आनंदित होता है । परंतु तमाम पापमय प्रवृत्तियाँ अंत में दुःखदायक होती हैं ।
मणसा वयसा चेव कायसा चेव अंतसो ।
आरओ परओ वावि दुहा वि असंजया ।
A man without self-control kills living beings mentally, verbally or physically, either for himself or for others or gets them killed through others.
असंयमी मनुष्य मन, वचन और काया से, अपने लिए और अन्यों के लिए, करने और कराने रूप - दोनों प्रकार से जीवों की हिंसा करते हैं ।
माइणो कटु माया य कामभोगे समारंभे ।
हंता छेत्ता पगब्भित्ता आयसायाणुगामिणो ।।
Deceitful persons perpetrating deceit are active only for their own comfort and happiness. They kill, cut, or dismember other living beings just for the sake of their pleasure.
अपने ही सुख के इच्छुक मायावी पुरुष माया कर के कामभोगों का सेवन करते हैं । वे प्राणियों का हनन, छेदन और कर्तन करनेवाले होते हैं ।
सव्वे सयकम्मकप्पिया अवियत्तेण दुहेण पाणिणो ।
हिंडंति भयाउला सढा जाइजरामरणेहि ऽ भिडुता ॥
All living beings have their present life according to their Karmas. Their unhappiness is often latent. Wicked and terrified beings wander around experiencing the pains of birth, old age and death.
सर्व प्राणी अपने कर्मों के अनुसार अवस्था प्राप्त करते हैं । अकसर उनका दुःख अप्रगट होता है । शठ और भय से व्याकुल जीव जन्म, जरा, और मृत्यु के दुःख से पीडित होते हुए संसार में भटकते हैं ।
कामेहि य संथवेहि गिद्धा कम्मसहा कालेण जंतवो ।
ताले जह बंधणच्चुए एवं आउक्खयंमि तुट्टइ ॥
Persons engrossed in wordly pleasures and attached to their relatives and friends ultimately face the consequences of thier own Karmas. They die when their life-span is over, just as a Tala fruit falls down, when detached from its stalk.
जैसे तालवृक्ष का फल बंधन तूटने पर गिर पडता है वैसे ही कामभोग में और परिवार में आसक्त जीव अपने कर्म के फल स्वरूप, आयुष्य टूटने पर मृत्यु को प्राप्त होता है।
अब्भागमितंमि वा दुहे अहवा उक्कमिते भवंतिए ।
एगस्स गती य आगती विदुमंता सरणं न मन्नइ ॥
A person has to experience his miseries all by himself. After death he goes to the next life all alone. Wise men therefore know that there is nothing in this world which is worth taking shelter of.
दुःख आ पड़ने पर मनुष्य अकेला ही उसे भोगता है। मृत्यु आने पर जीव अकेला ही परभव में जाता है। इस लिए ज्ञानी पुरुष किसी को शरण-रूप नहीं मानते ।
मा पच्छ असाहुया भवे अच्चेही अणुसास अप्पगं ।
अहियं च असाहु सोयई से थणइ परिदेवइ बहुं ॥
Keep yourself away from the influence of sensual pleasure. Discipline yourself, so that you may not have miseries in the next life, because such evil beings grieve, cry and groan a lot in the next birth.
परभव में दुर्गति न हो, इस विचार से अपनी आत्मा को विषयभोग से दूर रखो और उसे अनुशासन में रखो । दुर्गति में गया हुआ पापी जीव अत्यंत शोक करता है, आनंद करता है और वेदना से विलाप करता है ।
जमिणं जगई पुढो जगा कम्मेहिं लुप्पंति पाणिणो ।
सयमेव कडेहिं गाहई णो तस्स मुच्चेज्ज पुट्ठयं ॥
All living beings in this world experience individually the fruits of thier own Karmas. Their life after death is determined by their past deeds. Nobody can escape the results of the Karmas.
संसार के सभी प्राणी अपने कर्मों का फल भोगते हैं। अपने कर्म अनुसार वे विभिन्न गति में परिभ्रमण करते हैं। अपने कर्मों के फल भोगने से किसी का छुटकारा नहीं होता।
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