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|| जिन-वचन ||
जरा जाव न पीलेई वाही जाव न वड्ढई ।
जाविंदिया न हायंति ताव धर्म समायरे ॥
A person should properly practise religion before old age afflicts, before diseases become chronic and before the senses become powerless.
जब तक बुढ़ापा नहीं सताता, जब तक रोग नहीं बढ़ता, और जब तक इन्द्रियाँ क्षीण नहीं होतीं तब तक धर्म का अच्छी तरह से आचरण कर लेना चाहिए ।
तहेव सावज्जणुमोयणी गिरा ओहारिणी जा य परोवघायणी ।
से कोह लोह भयसा व माणवोन हासमाणो वि गिरं वएज्जा ।।
One should not speak, out of anger, greed, fear, ego or for the sake of humour, such words as may encourage sin, or derogate others or may be instrumental in killing others.
क्रोध, लोभ, भय, मान या मजाक में भी साधक सावध का अनुमोदन करनेवाली, अन्य का पराभव करनेवाली और अन्य का उपघात करनेवाली भाषा न बोले ।
जयं चरे जयं चिठे जयमासे जयं सए ।
जयं भुंजतो भासंतो पावं कम्मं न बंधई ॥
Walk carefully, stand carefully, sit carefully, sleep carefully, eat carefully, and speak carefully so that no sinful act is committed.
यतना (जागरूकता) पूर्वक चलनेवाला, यतनापूर्वक खड़ा होनेवाला, यतनापूर्वक बैठनेवाला, यतनापूर्वक सोनेवाला, यतनापूर्वक भोजन करनेवाला और यतनापूर्वक बोलनेवाला पाप-कर्म का बंधन नहीं करता ।
चित्तमंतमचित्तं वा अप्पं वा जइ वा बहुं ।
दंतसोहणमेत्तं पि ओग्गहं सि अजाइया ।
तं अप्पणा न गेण्हंति नो वि गेण्हावए परं ।
अन्नं वा गेण्हमाणं पि नाणुजाणंति संजया ।।
Persons with self-control do not take anything, whether animate or inanimate, whether small or big, not even a toothpick, · without it being formally given to them. They do not ask others to do so and do not support others in doing so either.
संयमी पुरुष सजीव या निर्जीव, अल्प या अधिक, दंतशोधन जैसी तुच्छ वस्तु का भी, उस के मालिक की अनुज्ञा लिए बिना स्वयं ग्रहण नहीं करता, औरों से ग्रहण नहीं कराता और ग्रहण करनेवाले का अनुमोदन भी नहीं करता ।
दिठं मियं असंदिद्धं पडिपुण्णं वियं जियं ।
अयंपिर-मणुव्विग्गं भासं निसिर अत्तवं ॥
A person with self-control should speak exactly what he has seen. His speech should be to the point, unambiguous, clear, natural, free from prattle and causing no anxiety to others.
आत्मार्थी दृष्ट का यथार्थ कथन करनेवाली, परिमित, असंदिग्ध, प्रतिपूर्ण, स्पष्ट, सहज, वाचालता रहित, और अन्य को उद्वेग करनेवाली भाषा बोले ।
स-वक्कसुद्धिं समुपेहिया मुणी गिरं च दुटुं परिवज्जए सया ।
मियं अदुळं अणुवीई भासए । सयाण मज्झे लहई पसंसणं ॥
Knowing fully well the importance of pure language a monk should always avoid evil language. Even while using such flawless language, he should speak only adequate and thoughtful words. Such monks are praised even by saints.
वाक्यशुद्धि (भाषा की शुद्धि)को अच्छी तरह समझ कर मुनि दोषयुक्त वाणी का प्रयोग न करे । दोष रहित वाणी भी नपीतुली और सोचविचार कर बोलनेवाला मुनि, सत्पुरुषों में प्रशंसा को प्राप्त करता है ।
समया सव्वभूएसु सत्तुमित्तेसु वा जगे ।
पाणाइवायविरई जावज्जीवाए दुक्करं ॥
To practise equanimity towards all the persons in the world, whether a friend or an enemy, and to practise non-violence towards all the living beings, throughout one's life is very difficult.
शत्रु हो या मित्र, संसार के सभी जीवों के प्रति समभाव रखना और यावज्जीवन प्राणातिपात की विरति करना अत्यंत कठिन कार्य है ।
दंतसोहणमाइस्स अदत्तस्स विवज्जणं ।
अणवज्जेसणिज्जस्स गेण्हणा अवि दुक्करं ॥
One should refrain from taking even a trifling thing like a toothpick without asking its owner. It is therefore very difficult to observe this rule of accepting only those things that are duly given and are free from blemish and really acceptable.
दंतशोधन आदि को बिना दिए न लेना और दत्त वस्तु भी वही लेना जो अनवद्य और एषणीय हो, इस व्रत का पालन करना बहुत कठिन है ।
चत्तारि परमंगाणि दुल्लहाणीह जन्तुणो ।
माणुसत्तं सुई सद्धा संजमम्मि य वीरियं ॥
Four great things are very rare in this world for a living being : (1) Birth as a human being, (2) Listening to scriptures, (3) Faith in religion and (4) Energy to practise self-control
इस संसार में जीवों के लिए चार परम बातें अत्यंत दुर्लभ हैं : (१) मनुष्य जन्म, (२) श्रुति अर्थात् शास्त्रश्रवण, (३) धर्म में श्रद्धा और (४) संयमपालन में वीर्य अर्थात् आत्म-बल ।
नाणं च दंसणं चेव चरित्तं च तवो तहा ।
एयं मग्गमणुप्पत्ता जीवा गच्छंति सोग्गइं
Human beings who are on the path of Knowledge, Faith, Character and Penance are on the path of true destiny.
ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप–इस मार्ग पर चलनेवाले जीव सुगति को प्राप्त करते हैं ।
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