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|| जिन-वचन ||
न वि मुंडिएण समणो न ओंकारेण बंभणो ।
न मुनि रण्णवासेणं कुसचीरेण न तावसो ॥
One does not become a monk only by shaving one's head; one does not become a Brahmana only by chanting Aum; one does not become an ascetic only by living in the woods and one does not become a Tapasa only by wearing bark-garments.
मात्र शिरमुंडन से कोई अंमण नहीं होता । सिर्फ ॐ का जाप करने से कोई ब्राह्मण नहीं होता । केवल अरण्य में रहने से कोई मुनि नहीं होता । और कुश का वस्त्र पहनने मात्र से कोई तापस नहीं होता.
समयाए समणो होइ बंभचेरेण बंभणो ।
नाणेण उ मुनि होइ तवेण होइ तावसो ।।
One becomes a monk by equanimity; a Brahmana by practising celibacy; an ascetic by acquiring knowledge and a Tapasa by penance.
समता से श्रमण होता है । ब्रह्मचर्य के पालन से ब्राह्मण होता है । ज्ञान से मुनि होता है और तपसे तापस होता है।
जिणवयणे अणुरत्ता जिणवयणं जे करंति भावेणं ।
अमला असंकिलिट्ठा ते होति परित्तसंसारी ॥
Those who have love for and faith in the teachings of the Jina, who practise them with devotion, who are free from the dirt of Mithyatva and also free from the tortures of passions, limit their Samsara i.e. the cycle of birth and death.
जो जिनवचन में अनुरक्त हैं तथा जिनवचनों का आचरण भावपूर्वक करते हैं और जो मिथ्यात्व के मल से और संक्लेश से रहित हैं वे अल्प संसार – (जन्म-मरण) वाले हो जाते हैं ।
कोहविजएणं भंते । जीवे किं जणयइ ? कोहविजएणं खन्ति जणयइ ।
कोहवेयणिज्जं कम्मं न बंधइ, पूव्वबद्धं च निज्जरेइ ।।
O Bhagavan ! What does the soul acquire by conquering anger ? By conquering anger the soul acquires the quality of forgiveness. He does not do any Karma caused by anger and becomes free from the past Karmas.
भन्ते । क्रोध-विजय से जीव क्या प्राप्त करता है ? क्रोध-विजय से वह क्षमा का उपार्जन करता है । वह क्रोध से उत्पन्न होनेवाला कर्मबंधन नहीं करता और पूर्वबद्ध कर्मों को क्षीण करता है ।
माणविजएणं भन्ते । जीवे किं जणयइ ? माणविजएणं मद्दवं जणयइ ।
माणवेयणिज्जं कम्मं न बंधइ, पूव्वबद्धं च निज्जरेइ ॥
Oh Bhagavan ! What does the soul acquire by conquering ego ? By conquering ego the soul acquires the quality of tenderness. He does not do any Karma caused by ego and becomes free from the past Karmas.
भन्ते । मान-विजय से जीव क्या प्राप्त करता है ? मान-विजय से वह मृदुता को प्राप्त करता है । वह मान से उत्पन्न होने वाला कर्मबंधन नहीं करता और पूर्वबद्ध कर्मों को क्षीण करता है ।
मायाविजएणं भन्ते ! जीवे किं जणयइ ? मायाविजएणं अज्जवं
जणयइ मायावेयणिज्जं कम्मं न बंधइ, पूव्वबद्धं च निज्जरेइ ।
O Bhagavan ! What does the soul acquire by conquering deceit ? By conquering deceit the soul acquires the quality of straightforwardness. He does not do any Karma caused by deceit and becomes free from the past Karmas.
भन्ते ! माया-विजय से जीव क्या प्राप्त करता है ? माया-विजय से जीव सरलता को प्राप्त करता है । वह माया से उत्पन्न होनेवाला कर्मबंधन नहीं करता और पूर्वबद्ध कर्मों को क्षीण करता है ।
लोभविजएणं भन्ते । जीवे किं जणयइ ? लोभविजएणं संतोसं जणयइ ।
लोभवेयणियज्जं कम्मं न बंधइ, पूव्वबद्धं च निज्जरेइ ॥
O Bhagavan ! What does the soul acquire by conquering greed ? By conquering greed the soul acquires the quality of contentment. He does not do any Karma caused by greed and becomes free from the past Karmas.
भन्ते ! लोभ-विजय से जीव क्या प्राप्त करता है ? लोभ-विजय से जीव संतोष को प्राप्त करता है । वह लोभ ये उत्पन्न होनेवाला कर्मबंधन नहीं करता और पूर्वबद्ध कर्मों को क्षीण करता है ।
न चित्ता तायए भासा कुओ विज्जाणुसासणं ।
विसन्ना पावकम्मेहिं बाला पंडियमाणिणो ।।
Knowledge of various languages does not give shelter to human beings. How can training in various arts protect them ? They think that they are highly learned persons, but in fact they are ignorant, if they are committing sinful deeds.
विविध भाषाओं का ज्ञान जीव को रक्षण नहीं देता । विद्या का अनुशासन भी कहां शरणरूप होता है ? अपने को पंडित मानने वाले वे पापकर्मों से मलिन हुए अज्ञानी ही हैं।
सुणिया भावं साणस्स सूयरस्स नरस्स य ।
विणए ठविज्ज अप्पाणं इच्छंतो हियमप्पणो ।।
An indisciplined person is compared to a dog and a pig. Realising the sense of this comparison, a person who is keen on his welfare should establish himself firmly on the path of discipline.
अविनयी मनुष्य कुत्ते और सूअर की तरह होता है । इस भाव को समझ कर अपना हित चाहने वाला मनुष्य अपने आप को विनय में स्थापित करे ।
अमणुन्नसमुप्पायं दुक्खमेव विजाणिया ।
समुप्पायमजाणंता कहं नायंति संवरं ।
One must know that unhappiness arises from one's own evil deeds. How can those who do not know the cause of unhappiness, determine the ways to prevent it ?
जानना चाहिए कि अशुभ कर्म से ही दुःख उत्पन्न होता है । जो दुःख की उत्पत्ति का कारण ही नहीं जानते वह दुःख के निवारण का उपाय कैसे जानेंगे ?
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