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|| जिन-वचन ||
धम्मज्जियं च ववहारं बुद्धेहायरियं सया ।
तमायरंतो ववहारं गरहं नाभिगच्छई ॥
If a man follows the course of conduct which conforms to religion and which has always been pursued by wise men, he will never be blamed.
जो व्यवहार धर्म से प्रमाणित हुआ है और जिसका ज्ञानी पुरुषों ने सदा आचरण किया है ऐसे व्यवहार का आचरण करनेवाले की निंदा नहीं होती ।
निसन्ते सिया अमुहरी बुद्धाणं अन्तिए सया ।
अट्ठजुत्ताणि सिक्खिज्जा निरट्ठाणि उ वज्जए ।
A devout disciple should always remain duly quiet. He should not be talkative. He should learn spiritual matters by always remaining in the company of wise men and he should avoid interest in useless matters.
साधक सदा शान्त रहे, वाचालता न करे, सदा ज्ञानी पुरुष के समीप रहे, उन के पास अर्थयुक्त बातें सीखे और निरर्थक बातों को छोड़ दे ।
आलवंते लवंते वा न निसीएज्ज कयाइ वि ।
चइऊणमासणं धीरो जओ जत्तं पडिस्सुणे ॥
A good disciple should leave his seat at once on being called by his preceptor, no matter how often this happens. He should then listen to him modestly.
गुरु के एक बार बुलाने पर या बार-बार बुलाने पर भी धीर शिष्य कभी भी बैठा न रहे । अपना आसन छोड़कर, उन के पास जा कर, वे जो कहें वह विनय पूर्वक सुनना चाहीए ।
आणानिद्देसकरे गुरुणमुववायकारए ।
इंगियागारसंपन्ने से विणीए त्ति वुच्चई ॥
He is called a disciplined pupil, who obeys the orders of his teacher, always remains with him and is capable of reading the thoughts and expressions of his teacher.
जो शिष्य गुरु की आज्ञा और निर्देश का पालन करता है, गुरु के निकट रहता है, गुरु के इंगित और आकार को समझता है वह विनीत शिष्य कहलाता है ।
जे आयरियउवज्झायाणं सुस्सूसावयणंकरा ।
तेसिं सिक्खा पवड्ढति जलसित्ता इव पायवा ।।
The Knowledge of the disciples who serve their teachers and obey their instructions sincerely, grows like trees sprinkled with water.
जो शिष्य आचार्य और उपाध्याय की शुश्रूषा और आज्ञापालन करते हैं उन की शिक्षा जल से सींचे हुए वृक्ष की तरह बढ़ती है ।
जहा अग्गिसिहा दित्ता पाउं होइ सुदुक्करा ।
तहा दुक्करं करेउं जे तारुण्णे समणत्तणं ।।
Just as it is very difficult to swallow a burning flame of fire, similarly, monkhood, particularly in young age, is extremely difficult.
जैसे प्रज्वलित अग्नि-शिखा को पीना दुष्कर है वैसे ही यौवन में श्रमण धर्म का पालन करना कठिन है ।
जहा दुक्खं भरेउं जे होइ वायस्स कोत्थलो ।
तहा दुक्खं करेउं जे कीबेणं समणत्तणं ।।
Just as it is very difficult to fill a gunny bag with air, similarly monkhood is extremely difficult for a weak person.
जैसे थैले को हवा से भरना कठिन कार्य है वैसे ही निर्बल व्यक्ति के लिए श्रमण धर्म का पालन करना अत्यंत कठिन कार्य है।
नापुट्ठो वागरे किंचि पुट्ठो वा नालियं वए ।
कोहं असच्चं कुव्वेज्जा धारेज्जा पियमप्पियं ।।
A wise disciple should not respond unless he is asked. When he is asked something he should never tell a lie. He should control anger. He should bear pleasant and unpleasant words with equanimity.
विनीत शिष्य बिना पूछे कुछ भी न बोले । पूछने पर असत्य न बोले । क्रोध आ जाए तो उसे निष्फल करे । प्रिय और अप्रिय वचनों को समभाव से धारण करे ।
मणगुत्तयाए णं भंते । जीवे किं जणयइ ?
मणगुत्तयाए णं जीवे एगग्गं जणयइ ।
एगग्गचित्ते णं जीवे मणगुत्ते संजमाराहए भवइ ।।
O Bhagavan ! what does the soul achieve by controlling the mind ? By controlling the mind the soul achieves the concentration of mind. The soul with the concentration of mind controls the senses.
भन्ते ! मनोगुप्ति से जीव क्या प्राप्त करता है ? मनोगुप्ति से जीव को एकाग्रता प्राप्त होती है । एकाग्र चित्त वाला मनोगुप्त जीव संयम की आराधना करनेवाला होता है ।
वयगुत्तयाए णं भंते । जीवे किं जणयइ ? वयगुत्तयाए णं निव्विकारत्तं जणयइ ।
निम्विकारे णं जीवे वइगुत्ते अज्झप्पजोगसाहणजुत्ते यावि भवइ ॥
O Bhagavan ! What does the soul achieve by controlling the speech ? By controlling the speech the soul achieves mental steadiness and having achieved mental steadiness, the soul with controlled speech becomes qualified for self-realisation.
भन्ते ! वचन-गुप्ति से जीव क्या प्राप्त करता है ? वचन-गुप्ति से जीव निर्विकार भाव प्राप्त करता है । निर्विकार वचनगुप्त जीव अध्यात्म योग के साधन से युक्त हो जाता है।
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