अर्हन्त आदिकों का क्रम से, वर्णध्यान इस प्रकार करना चाहिए- अर्हनत श्वेत, सिद्ध-अरूण, आचार्य पीत, प्रियंगु.....(नीलवर्ण वृक्ष) के समान उपाध्याय और वृक्षपत्रों के समान साधुओं का ध्यान करना चाहिए तथा अम्ल, मधुर, तिक्त, कषाय और कटु इस पंच रस रूपमें परमेष्ठियों की वन्दना करनी चहिए।
अर्हन्तों का ध्यान नन्दा तिथि में, सिद्धों का भद्रातिथि में, आचार्यों का जयातिथि में, उपाध्यायों का रिक्ता तिथी में तािा साधुओं का पूर्णतिथि में ध्यान करना चाहिए। ये पांच परमेष्ठी मुझे सदा सुख दें। ------------------------------------------------ 1- गाथानं. 18-18-19-20 इन चारों गाथाओं का अर्थ ठीक तरह समझ में नहीं आ सका। अतः विद्वान इनका उनके आभारी रहेंगे और अगले संस्कारण में इन गधाओं र्का अाि दे देंगे--सं0
सोम-मंगलवारों को अर्हन्तों का, बुधवार को सिद्धों का, बृहस्पतिवारको आचार्यों का, शुक्रवार को उपाध्यायों का अैर रविवार तथा शनिवार को साधुओं का ध्यान करने पर वे सुखप्रद होते हैं।
अर्हन्तों का ध्यान कार्तिक और चैत्र में, सिद्धों का ध्यान वैशाख और मार्गशीर्ष में, आचार्यों का पौष, ज्येष्ठ, भाद्रपद अैर आश्विन में, उपाध्यायों का माघ और आषाढ़ मासों में तथा साधुओं का फाल्गुन एवं श्रावण्या मांस में ध्यान करना चाहिए। अचिन्त्यचिन्तामणि भगवान् अर्हन्त मेरा कल्याण करें।
अर्हन्त पुरूष नक्षत्र हैं, घनिष्ठापंचक सिद्ध हैं, आचार्य द्विगु नक्षत्र हैं, उन्हें मैं भक्तिपूर्वक सिर झुकाकर नमस्कार करता हूं। आद्र्रा आदि जो नक्षत्र हैं वे उपाध्याय हैं। वे मुझे अनेक गुणों को प्रदान करें। चित्रा और स्वाति नक्षत्र साधु स्वरूप हैं। ये मुझे शाश्वत सुख प्रदान करें।
कुम्भ, कन्या और वृष राशि रूप अर्हंन्त, मेष, मकर और मीन रूप सिद्ध भगवान, सिंह तथा वृश्चिक रूप आचार्य, धनु ओर मिथुन रूप उपाध्याय हैं, उन्हें नमस्कार हो। कर्क और तुला स्वरूप साधु। इस प्रकार द्वादश राशिस्वरूप पंचपरमेष्ठी मेरे द्वारा स्तुति किये गये सुख और मुक्ति के दायक हों।
इसलिए ग्रहकणिगत और मन्त्रतन्त्रादि इसके निर्मित्त नहीं है। इस पंचपरमेष्ठी स्तवन से जो मांगा जाता है, सो देता है और जो पूछा जाता है सो कहता है।
मूल-मन्त्र और तन्त्र इस प्रकार तीन रूप महान् त्रिभुवनस्वामिनी विद्या यहां स्थित होते हुए भी गुरूउपदेश बिना प्राप्त नहीं की जा सकती।
यह पंचपरमेष्ठी स्तोत्र स्मरण मात्र से सम्पूर्ण पापों का नाश कर देता है और संसार में ऐसा कोई सुख नहीं है जिसे परम्परा से प्राप्त न किया जा सके।
पंच नमस्कार मन्त्र का तत्व श्रीमानतुंगाचार्य ने अपने अनुभव के आधार पर संक्षेप में कहा है। यह मन्त्र मुझे विशुद्ध मोक्ष-सुख दे।
जो इस नवपदी णमोकार मंत्र का स्मरण करता है, पढ़ता है, नित्य ध्यान करता है और उच्चारण करता है वह अपना कल्याण करता है और आत्मज्ञान प्राप्त कर लेता है।
इस नवपदी नमस्कार मन्त्र के पाठ से न तो उपसर्ग किसी प्रकार की पीड़ा देते हैं, न क्रूर ग्रहों का दर्शन होता है और न संसार-परिभ्रमण की बहुशंका रहती है। यद्यपि एक बार नमस्कारमन्त्र के जाप से ये बाधाएं नहीं होतीं, तथापि इसका त्रिकाल पाठ करना चाहिए।