।। केतुग्रहारिष्ट निवारक ।।

jain temple355

श्रीपाश्र्वनाथ जिनेन्द्र पूजा

स्थापना-गीता छंद

तर्ज-आओ बच्चों तुम्हें दिखाएं.........

चलो सभी मिल पूजन कर लें, पाश्र्वनाथ भगवान की।

केतू ग्रह की बाधा हरने, वाले प्रभू महान की।।

वन्दे जिनवरम्-2 वन्दे जिनवरम्-2।।टेक.।।

हमस ब प्रभु की पूजन हेतू, आह्वानन विधि करते हैं।
स्थापन सन्निधीकरण, करके आतम निधि वरते हैं।।
अओ तिष्ठो प्रभु मुझ मन में, कुछ तो शक्ति प्रदान करो।
निज सम धैर्य-क्षमा गुण देकर, मेरा भी उत्थान करो।।
पारस प्रभु की पूजन से, बनते पारस भगवान भी।
केतू ग्रह की बाधा हरने, वलो प्रभू महान की।।
वन्दे जिनवरम्-2 वन्दे जिनवरम्-2।
ऊँ ह्मीं केतुग्रहारिष्टनिवारक श्रीपाश्र्वनाथजिनेन्द्र! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं।
ऊँ ह्मीं केतुग्रहारिष्टनिवारक श्रीपाश्र्वनाथजिनेन्द्र! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं।
ऊँ ह्मीं केतुग्रहारिष्टनिवारक श्रीपाश्र्वनाथजिनेन्द्र! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं स्थापनां।

-अष्टक-

तर्ज-हे मां तेरी सूरत.........

हे नाथ! तुम्हारी पूजन को, हम थाल सजाकर लाए हैं।
भगवान्.....भगवान् तुम्हारे चरणों में, ग्रहशांती करने आए हैं।।
भव भव में प्रभु हमने, कितना जल पी डाला।
पर शांत न हो पाई, मेरे मन की ज्वाला।।
भव भव के ताप मिटाने को, जलधारा करने आए हैं।
भगवान तुम्हारे चरणों में, ग्रह शांती करने आए हैं।।1।।
ऊँ ह्मीं केतुग्रहारिष्टनिवारक श्रीपाश्र्वनाथजिनेन्द्रय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा।

हे नाथ! तुम्हारी पूजन को, हम थाल सजाकर लाए हैं।
भगवान्.......भगवान् तुम्हारे चरणों में, ग्रहशांती करने आए हैं।।
मेरे चैतन्य सद में, क्रोधाग्नी जलती है।
अज्ञान के अंचल में, छिप-छिप वह पलती है।।
हम इसीलिए चन्दन लेकर, भवताप मिटाने आए हैं।
भगवान तुम्हारे चरणों में, ग्रहशांती करने आए हैं।।2।।
ऊँ ह्मीं केतुग्रहारिष्टनिवारक श्रीपाश्र्वनाथजिनेन्द्रय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा।

हे नाथ! तुम्हारी पूजन को, हम थाल सजाकर लाए हैं।
भगवान्......भगवान् तुम्हारे चरणों में, ग्रहशांती करने आए हैं।।
मेरा जीवन खंडित है, मद मोह व माया में।
अब करना अखंडित है, प्रभु शीतल छाया में।।
अतएव अखण्डित पुंजों से, अक्षय पद पाने आए हैं।
भगवान तुम्हारे चरणों में, ग्रह शांती करने आए हैं।।3।।
ऊँ ह्मीं केतुग्रहारिष्टनिवारक श्रीपाश्र्वनाथजिनेन्द्रय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा।

हे नाथ! तुम्हारी पूजन को, हम थाल सजाकर लाए हैं।
भगवान्........भगवान् तुम्हारे चरणों, ग्रहशांती करने आए हैं।।
कितने उद्यानों में जा, पुष्पों की गंा लिया।
कभी घर को सजाया मैंने, कभी निज श्रृंगार किया।।
अब तेरे पावन चरणों में, हम पुष्प चढ़ाने आए हैं।
भगवान तुम्हारे चरणों में, ग्रह शांति करने आए हैं।।4।।
ऊँ ह्मीं केतुग्रहारिष्टनिवारक श्रीपाश्र्वनाथजिनेन्द्रय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा।

हे नाथ! तुम्हारी पूजन को, हम थाल सजाकर लाए हैं।
भगवान्......... भगवान् तुम्हारे चरणों में, ग्रहशांती करने आए हैं।।
हमने कितने भव-भव में, पकवान बहुत खाएं।
लेकिन इस नश्वर तन की, नहिं भूख मिटा पाए।।
क्षुधरोग निवारण हेतु प्रभो! नैवेद्य थाल भर लाए हैं।
भगवान तुम्हारे चरणों में, ग्रह शांती करने आए हैं।।5।।
ऊँ ह्मीं केतुग्रहारिष्टनिवारक श्रीपाश्र्वनाथजिनेन्द्रय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा।
हे नाथ! तुम्हारी पूजन को, हम थाल सजाकर लाए हैं।
भगवान्....भगवान् तुम्हारे चरणों में, ग्रहशांती करने आए हैं।।
अज्ञान नगर में मेरा, चिरकाल से रमना।
नृप मोह के बन्धन में, नहिं पूर्ण हुआ सपना।।
अज्ञान अंधेर मिटाने को, हम दीप जलाकर लाए हैं।।
भगवान तुम्हारे चरणों में ग्रह शांती करने आए हैं।।6।।
ऊँ ह्मीं केतुग्रहारिष्टनिवारक श्रीपाश्र्वनाथजिनेन्द्रय मोहांधकारविनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा।

हे नाथ! तुम्हारी पूजन को, हम थाल सजाकर लाए हैं।
भगवान्....भगवान् तुम्हारे चरणों में, ग्रहशांती करने आए हैं।।
हमने कर्मों में निज को, आनन्दित माना है।
अतएव निजातम सुख को, किंचित नहिं जाना है।।
कर्मों के ज्वालन हेतु प्रभो! हम धूप जलाने आए हैं।
भगवान तुम्हारे चरणों में, ग्रह शांती करने आए हैं।।7।।
ऊँ ह्मीं केतुग्रहारिष्टनिवारक श्रीपाश्र्वनाथजिनेन्द्रय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा।

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