।। केतुग्रहारिष्ट निवारक ।।

jain temple356

है नाथ! तुम्हारी पूजन को, हम थाल सजाकर लाए हैं।
भगवान्...........भगवान तुम्हारे चरणें में ग्रहशांती करने आए हैं।।
मैं क्षणिक विनश्वर फल के, स्वादों में फंसा रहा।
जिह्वा की लालुपता में, उत्तमफल को न लहा।।
तुम सम फल की प्राप्ति हेतु, फल थाल सजाकर लाए हैं।
भगवान तुम्हारे चरणों में, ग्रह शांती करने आए हैं।।8।।
ऊँ ह्मीं केतुग्रहारिष्टनिवारक श्रीपाश्र्वनाथजिनेन्द्रय मोक्षफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा।

है नाथ! तुम्हारी पूजन को, हम थाल सजाकर लाए हैं।
भगवान्...........भगवान तुम्हारे चरणें में ग्रहशांती करने आए हैं।।
मैं अष्टद्रव्य ले करके, तव सन्निध आया हूं।
अष्टम वसुधा पाने को, मैं भी ललचाया हूं।।
‘‘चन्दना’’ सिद्ध पद प्राप्ति हेतु, कुछ भक्त तेरे दर आए हैं।
भगवान तुम्हारे चरणों में, ग्रह शांती करने आए हैं।।9।।
ऊँ ह्मीं केतुग्रहारिष्टनिवारक श्रीपाश्र्वनाथजिनेन्द्रय अनघ्र्यपदप्राप्तये अध्र्यंम् निर्वपामीति स्वाहा।

तर्ज-करती हूं तुम्हारी भक्ति........

जब तक गंगा यमुना में, जलधार बहेगी।
तब तक पारस प्रभु की भक्ती, रसधार बहेगी।।
हे पाश्र्वप्रभू जी, हे पाश्र्वप्रभू जी।
कंचन झारी से चरणें में, त्रयधारा करनी है।
सांसारिक जन्म जरा मत्यू की, बाधा हरनी है।।
जब तक केतू के कष्टों की, नहिं हानि रहेगी।
तब तक पारस प्रभु की भक्ती, रसधार बहेगी।
हे पाश्र्वप्रभु जी, हे पाश्र्वप्रभू जी।।1।।
शंतये शांतिधारा

जब तक स्वर्गों में कल्पवृक्ष का, वास रहेगा।
पारसप्रभु के गुणपुष्पों का, इतिहास रहेगा।।
जय पारस देवा, जय पारस देवा।।
चम्पा चमेली पुष्पाों से पुष्पांजलि करना है।
आत्मीक गुणों से अन्तर्मन को, पुष्पित करना है।।
उनका अर्जन केतू की बाधा, ह्रास करेगा।
पारस प्रभु के गुणपुष्पों का, इतिहास रहेगा।।
जय पारस देवा, जय पारस देवा।।2।।
दिव्य पुष्पांजलिः।

(अब मण्डल पर केतुग्रह के स्थान पर श्रीफल सहित अघ्र्यं चढ़ावें)

तर्ज-अए महावीर भगवान..............

कर लो पारस प्रभु का ध्यान, तुम पारस बन जाओगे।
तुम पारस बन जाओगे, मुक्ति श्री पा जाओगे।। कल लो... ।।टेक.।।
ग्रह केतु अरिष्ट की शांति, होवे तब मिटे अशान्ती।
भय भागें सब इक क्षण में, नहिं चोट लगे मेरे मन में।।
‘‘चन्दना’’ करो गुणगान, तुम पारस बन जाओगे।। कल लो...।।1।।
ऊँ ह्मीं केतुग्रहारिष्टनिवारक श्रीपाश्र्वनाथजिनेन्द्रय पूर्णाघ्र्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलिः।
जाप्य मंत्र ऊँ ह्मीं केतुग्रहारिष्टनिवारक श्रीपाश्र्वनाथजिनेन्द्रय नमः।

जयमाला

तर्ज-तुमसे लागी लगन.........

जय जय पारस प्रभो, भवदधितारक विभो, द्वार आया
अघ्र्यं का थाल मैंने सजाया।।टेककृ।।
गर्भ से मास छह पूर्व नगरी, रत्नमय वह बनारस पुरी थी।
इन्द्रगण आ गए, चक्रधर पा गए, तेरी छाया।
अघ्र्य का थाल मैंने सजाया।।1।।
जन्म होते ही मम्पित मुकुट थे, दिव्य बाजे स्वयं बज उठे थे।
जब चकित हो गया, मोह तम खो गया, प्रभु की माया।
अघ्र्य का थाल मैंने सजाया।।2।।
वामानन्दन हो पारस प्रभो तुम, अश्वसेन के प्रिय लाल हो तुम।
धर्मांमृत जो बहा, ज्ञानामृत को लहा, जो आया।
अघ्र्यं का थाल मैंने सजाया।।3।।
केतु ग्रह की सभी बाधा हर लो, उच्च पद यशसहित मुझको कर दो।
विघ्नविजयी हो तुम, मृत्युविजयी हो तुम, सिद्धि पाया।
अघ्र्य का थाल मैंने सजाया।।4।।
तेरी भक्ती का फल मैं यह चाहूं, कंठ अपना अकुंठित बनाऊं।
‘‘चन्दनामती’’ प्रभो, मांगते सम विभो, तेरी छाया।
अघ्र्य का थाल मैंने सजाया।।5।।
ऊँ ह्मीं केतुग्रहारिष्टनिवारक श्रीपाश्र्वनाथजिनेन्द्रय जयमाला पूर्णाघ्र्यंम् निर्वपामीति स्वाहा।

शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलिः।
पाश्र्वनाथ की भाक्ति का, जो करते रसपान।
अपनी आतमशक्ति की, वे करते पहचान।।

इत्याशीर्वादः पुष्पांजलिः।

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