नवग्रह अरिष्ट निवाकर विधान (श्री मनसुख जी रचित)
(दोहा)
आदि अन्त जिनवर नमो, धर्मं प्रकाशन हार। भव्य विघ्न उपशान्तको, ग्रहपूजा चित्त धार।। काल दोष परभावसौं विकल्प छूटे नाहिं। जिन पूजामें ग्रहनकी, पूजा मिथ्या नाहिं।। इस ही जम्बूद्वीप में, रवि-शशि मिथुन प्रमान। ग्रह नक्षत्र तारा सहित, ज्योतिष चक्र प्रमान। तिनही के अनुसार सौं कर्म चक्र की चाल। सुख दुःख जाने जीवको, जिन वच नेत्र विशाल।। ज्ञान प्रष्न-व्याकर्ण में, प्रश्न अंक है आठ। भद्रबाहु मुख जनित जो, सुमन कियो मुख पाठ। अवधि धार मुनिराजी, कहै पूर्व कृत कर्म। अनके वध अनुसार सौ, हरे हृदयको भर्म।।
समुच्चय पूजा
ऊँ ह्मीं सर्वग्रह अनिष्टनिवारक चतुर्विंशति जिन अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाननं, अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापन, अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधिकरणम्।
अष्टक (गीतीका छन्द)
ऊँ ह्मीं सर्वग्रह अनिष्टनिवारक चतुर्विंशति जिन अत्र तीर्थंकर जिनेन्द्राय जलं निः स्वाहा।
ऊँ ह्मीं सर्वग्रह अनिष्टनिवारक चतुर्विंशति जिन अत्र तीर्थंकर जिनेन्द्राय चन्दन निः स्वाहा।
ऊँ ह्मीं सर्वग्रह अनिष्टनिवारक चतुर्विंशति जिन अत्र तीर्थंकर जिनेन्द्राय अक्षतंनिः स्वाहा।
ऊँ ह्मीं सर्वग्रह अनिष्टनिवारक चतुर्विंशति जिन अत्र तीर्थंकर जिनेन्द्राय पुष्पं निः स्वाहा।
ऊँ ह्मीं सर्वग्रह अनिष्टनिवारक श्रीचतुर्विंशति तीर्थंकर जिनेन्द्राय नैवेद्य निः स्वाहा।
ऊँ ह्मीं सर्वग्रह अनिष्टनिवारक श्रीचतुर्विंशति तीर्थंकर जिनेन्द्राय दीपम् निः स्वाहा।
ऊँ ह्मीं सर्वग्रह अनिष्टनिवारक श्रीचतुर्विंशति तीर्थंकर जिनेन्द्राय धूपम् निः स्वाहा।
ऊँ ह्मीं सर्वग्रह अनिष्टनिवारक श्रीचतुर्विंशति तीर्थंकर जिनेन्द्राय फलं निः स्वाहा।