श्री पुष्पदन्तनाथ पूजा
सथापना-शंभु छंद
-दोहा-
ऊँ ह्मीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीमहावीरजिनेन्द्रय ! अत्र अवतर अवतर संवौषट् आह्वाहननं।
ऊँ ह्मीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीमहावीरजिनेन्द्रय ! अत्र तिष्ठ तिष्ठ ठः ठः स्थापनं।
ऊँ ह्मीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीमहावीरजिनेन्द्रय ! अत्र मम सन्निहितो भव भव वषट् सन्निधीकरणं स्थापनां।
-अष्टक-
-चामर छंद-
साधुचित्त के समान शुद्ध नीर ले लिया। धार दे जिनेन्द्रपाद भव का तीर ले लिया।। पुष्पदंतनाथ! शुक्रग्रह अरिष्ट दूर हो। मेरी आत्मा में शांति का सदैव पूर हो।।1।। ऊँ ह्मीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीमहावीरजिनेन्द्रय जन्मजरामृत्युविनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा। दिव्य चन्दन की ही प्रतीक केशर मेरी। पादपद्म में विलेपते सुगंधि है मिली।। पुष्पदन्तनाथ! शुक्रग्रह अरष्टि दूर हो। मेरी आत्मा में शांति का सदैव पूरा हो।।2।। ऊँ ह्मीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीमहावीरजिनेन्द्रय संसारतापविनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा। तुच्छ तंदुलों में मोतियों की कल्पना मेरी। नाथ! पूर्ण होएगी जरूरी साधना मेरी।। पुष्पदन्तनाथ! शुक्रग्रह अरिष्ट दूर हो। मेरी आत्मा में शांति का सदैव पूरा हो।।3।। ऊँ ह्मीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीमहावीरजिनेन्द्रय अक्षयपदप्राप्तये अक्षतं निर्वपामीति स्वाहा। फूल हों या पीले चावलों में पुष्पभावना। अर्चना के रूप में फलेगी मेरी भावना।। पुष्पदंतनाथ! शुक्रग्रह अरिष्ट दूर हो। मेरी आत्मा में शांति का सदैव पूरा हो।।4।। ऊँ ह्मीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीमहावीरजिनेन्द्रय कामबाणविध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा। खीर और पूरियों को थाल में भरा लिया। भूख व्याधि शांति के लिए चरू चढ़ा दिया।। पुष्पदन्तनाथ! शुक्रग्रह अरिष्ट दूर हो। मेरी आत्मा में शांति का सदैव पूरा हो।।5।। ऊँ ह्मीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीमहावीरजिनेन्द्रय क्षुधारोगविनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा। दीपकों की ज्योति से प्रकाश फैलता सदा। प्रभु की आरती से मन की ज्योति पाऊं सर्वदा।। पुष्पदन्तनाथ! शुक्रग्रह अरष्टि दूर हो। मेरी आत्मा में शांति का सदैव पूरा हो।।7।। ऊँ ह्मीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीमहावीरजिनेन्द्रय अष्टकर्मदहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा। सत्फलों से युक्त मोक्षफल की याचना करूं। द्राक्ष आम्र आदि अप्र्य यह ही भावना करूं।। पुष्पदन्तनाथ! शुक्रग्रह अरिष्ट दूर हो। मेरी आत्मा में शांति का सदैव पूर हो।।8।। ऊँ ह्मीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक जनेन्द्रय श्रीमहावीर मिक्षोफलप्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा। जलफलादि द्रव्य ले करूं जिनेन्द्र अर्चना। तुम समान पद मिले, आश यही ही ‘‘चन्दना’’।। पुष्पदन्तनाथ! शुक्रग्रह अरिष्ट दूर हो। मेरी आत्मा में शांति का सदैव पर हो।।9।। ऊँ ह्मीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीमहावीर जिनेन्द्रय अनघ्र्यपदप्राप्तये अघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा। रत्नत्रय की प्राप्ति हेतु तीन धार मैं करूं। जनम और जरा मरण त्रिरोग नाश मैं करूं।। पुष्पदन्तनाथ! शुक्रग्रहअरिष्ट दूर हो। मेरी आत्मा में शांति का सदैव पूरा हो।।10।। शांतये शांतिधारा। श्री जिनेन्द्र के समीज पुष्प अंजली भरूं। पुष्प को बिखेर कर सुगंधि स्र्वदिक् करूं।। पुष्पदन्तनाथ! शुक्रग्रहअरिष्ट दूर हो। मेरी आत्मा में शांति का सदैव पूर हो।। दिव्य पुष्पांजलिः।