।। शुक्रग्रहारिष्ट निवारक ।।

jain temple353

(अब मण्डल के ऊपर शुक्रग्रह के स्थान पर श्रीफल सहित अघ्र्य चढ़ावें)
तर्ज-चांद मेरे आ जा रे.......................
नाथ की पूजन करते हैं-2,
अष्टद्रव्य, की थाली प्रभू के, चरणों में धरते हैं। नाथ की........।। टेक.।।

जब अशुभ कर्म के कारण, तन में व्याधी आती है।
धनहानि कलह आदिक से, मन में आंधी आती है।।
नाथ की पूजन करते हैं।।1।।
प्रभु पुष्पदंत तीर्थंकर, ग्रहशुक्र के स्वामी माने।
वे इस ग्रह की शांति में, ‘‘चन्दना’’ प्रमुख हैं माने।।
नाथ की पूजन करते हैं।।2।।
ऊँ ह्मीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीमहावीर जिनेन्द्रय नमः।

जयमाला

भगवान् तुम्हारी पूजन से, सम्यग्दर्शन मिल जाता है।
हे नाथ! तुम्हारे अर्चन से, निज अनतर्मन खिल जाता है।।टेक0।।
जैसे अंगार दहकता है, जल सबकी प्यास बुझाता है।
सूरज जैसे देकर प्रकाश, धरती का तिमिर भगता है।।
वैसे ही प्रभु मुख दर्शन से, मानों सब कुछ मिल जाता है।
हे नाथ! तुम्हारे अर्चन से, निज अन्तर्मन खिल जाता है।।1।।

दशर्न के भाव हुए जिस क्षण, उपवास का फल प्रारंभ हुआ।
चलकर जब पहुंच गए मंदिर, लक्षोपवास फल सहज हुआ।।
प्रभु सम्मुख आ गद्गद मन से, भव भव का अघ धुल जाता है।
हे नाथ! तुम्हारे अर्चन से, निज अन्तर्मन खिल जाता है।।2।।

भक्ति में शक्ति अचिन्त्य कही, यह भुक्ति मुक्ति सब कुछ देती।
जिन प्रतिमा भले अचेतन हैं, फिर भी चेतन को फल देतीं।।
पौराणिक कथन ‘‘चन्दना यह, कलियुग में भी फलदाता है।
हे नाथ! तुम्हारे अर्चन से, निज अन्तर्मन खिल जाता है।।3।।

हो शुक्र अनिष्ट यदि प्रभुवर, दुख इष्ट वियोग सताता है।
यह शुभ हो जावे यदि जिनवर, सांसारिक सौख्य दिलाता है।।
प्रभु पुष्पदन्त भगवान् तेरी, भक्ति से सब मिल जाता है।
हे नाथ! तुम्हारे अर्चन से, निज अन्तर्मन खिल जाता है।।4।।
ऊँ ह्मीं शुक्रग्रहारिष्टनिवारक श्रीमहावीर जिनेन्द्रय जयमाला पूर्णाघ्र्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा। दिव्य पुष्पांजलिः
पुष्पदंत की अर्चना, हरे सकल दुख दोष।
करे शुक्रग्रह सान्त्वना, भरे स्वात्मसुख तोष।।

इत्याशीर्वादः पुष्पांजलिः।

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