।। जैन रक्षा-स्तोत्रम् ।।

jain temple359
श्रीजिनं भक्तिो नत्वा त्रैलोक्याह्लादकारकम्।
जैनरक्षामहं वक्ष्ये देहिनां देहरक्षकम्।।1।।

तीनों लोकों को आह्लादित करने वाले एवं देहधारियों के देह की रक्षा करने वाले भगवान् जिनेश्वर को भक्तिपूर्वक नमस्कार करके जैन-रक्षा-स्तोत्र को कहता हूं।

ऊँ ह्मीं आदिश्वरः पातु शिरसि सर्वदा मम।
ऊँ ह्मीं श्रीं अजितो देवो भाल रातु सर्वदा।।2।।

ऊँ ह्मीं भगवान् आदिनाथ मेरे मस्तक की सदैव रक्षा करें। ऊँ ह्मीं श्रीं देवेश्वर अजित मेरे भले की सदैव रक्षा करें।

नेत्रयोंः रक्षको भूयात् ऊँ आं क्रौं सम्भवों जिनः।
रक्षेद्र घ्रारणेन्द्रिये ऊँ ह्मीं श्रीं क्लीं ब्लू अभिनन्दनः ।।3।।

ऊँ आं क्रौं तीर्थकर सम्भवनाथ मेरे नेत्रों की रक्षा करें। ऊँ ह्मीं श्रीं क्लीं ब्लूं तीर्थकर अभिनन्दन मेरी घ्रारणेन्द्रियों की (नासिका की) रक्षा करें।

सुजिह! वे सुमुखे पातु सुमतिः प्रणावान्तिवः।
कर्णयोः पातु ऊँ ह्मीं श्रीं रक्तः पद्मप्रभःः ।।4।।

ओंकार ध्वनि से युक्त तीर्थंकर श्रीसुमतिनाथ भगवान् मेरी जिह्व और मुख की रक्ष करें। ऊँ ह्मीं श्रीं रक्तवर्ण भगवान् भद्मप्रभु प्रभु मेरे कानों की रक्षा करें।

सुपाश्र्वः सप्तमः पातु ग्रीवायां ह्मीं श्रियाश्रितः।
पातु चन्द्रप्रभुः ऊँ ह्मीं क्री (क्रां) पूर्वस्कन्धयोर्मम।।5।।

श्री से शोभायमान सप्तम तीर्थंकर भगवान् सुपाश्र्वनाथ मेरी ग्रीवा की रक्षा करें। श्रीं ह्मीं (क्र) भगवान् चन्द्रप्रभु मेरे स्कन्धों की रक्षा करें।

सुविधिः शीतलो नाथो रक्षको करपंकजे।
ऊँ क्षां क्षीं क्षूं युतो कामं चिदानन्दमयौ शुभौ।।6।।

ऊँ क्षां क्षीं क्षूं चिदानन्दमय शुभ भगवान् सुविधि और शीतलनाथ मेरे करपंकजों (हाथों) की रक्षा करें।

श्रेयांसे वासुपूज्यश्च हृदये सदयं सदा।
भूयाद् रक्षाकरो वारं वारं श्रीप्रणवान्वितः।।7।।

श्री और प्ररेणा से युक्त श्रेयांस और वासुपूज्य भगवान् दया करके मेरे हृदय की निरंतर रक्षा करें।

विमलोऽनन्तनाथश्च मायाबीजसमन्वितो।
उदरे सुन्दरे शश्वद् रक्षायाः कारकौ मतौ।।8।।

मायाबीजाक्षर से युक्त विमलानाथ और अनन्तनाथ भगवान् मेरे सुन्दर उदर (पेट) की रक्षा करें।

श्रीधमेशान्तिनाथौ च नाभिपंकेरूहे सताम्।
ऊँ ह्मीं श्रीं क्लीं हंसंयुक्तौ पुनः पातां पुनः पुनः।।9।।

ऊँ ह्मीं श्रीं क्लीं हंस े युक्त श्रीधर्मनाथ और शान्तिनाथ वारं - वार नाभिकमल की रक्षा करें।

श्रीकुन्थु-अरनाथौ तु सुगुय सुकटीतटे।
भवेतामवकौ भूरि ऊँ ह्मीं क्लीं सहितौ जिनौ।।10।।

ऊँ ह्मीं क्लीं से सहित भगवान् कुन्थुनाथ और अरनाथ मेरे कटितट की रक्षा करें।

मे पातां चारू जंघायां श्रीमल्लिमुनिसुव्रतौ।
ऊँ ह्मां ह्मीं ऊँ ह्मूं ततो ह्मः व्लूं क्लीं श्रीं युक्तै कृपाकरौ।।11।।

ऊँ ह्मां ह्मीं ऊँ ह्मूं ह्मः ब्लूं क्लीं श्रीं से युक्त कृपालु भगवान् मल्लिनाथ और मुनिसुव्रतनाथ मेरी सुन्दर जंघाओं की रक्षा करें।

यत्नतो रक्षकौ जानू श्रीनमिनेमिनाथकौ।
राजराजीमतीमुक्तौ प्रणवाक्षरपूर्वकौ।।12।।

राज्य और राजीमती को छोड़कर जाने वाले ओंकार से युक्त भगवान् अमिनाथ और नेमिनाथ मेरे जानुदेश (घुटनों) की रक्षा करें।

श्रीपाश्र्वेशमहावीरौ पातां मां ह्मौं सुमानदौ।
ऊँ ह्मी श्रीं च तथा भ्रूं क्लीं ह्मां ह्मः श्रां श्रः युतौ जिनौ।।13।।

ऊँ ह्मी श्रीं भूं क्लीं ह्मां ह्मः श्रां श्रः से युक्त सूमान देने वाले भगवान् श्रीपाश्र्वनाथ और महावीर मेरी रक्षा करें।

रक्षााकरा यथास्थाने भवन्तु जिननायकाः।
कर्मक्षयकरा ध्याता भीतानां भयवारकाः।।14।।

कर्म के नाश करने वाले, भयत्रस्तों का भय, निवारण करने वाले भगवान् जिनेन्द्र ध्यान किये गये यथास्थान रक्षा करने वाले हों।

जैनरक्षां लिखित्वेमां मस्तके यस्तु धारयेत्।
रविवद् दीप्यते लोके श्रीमान् विश्वप्रियो भवते्।।15।।

जेा व्यक्ति इस जैन-रक्षा-स्तोत्र को लिखकर अपने मस्तक पर धारण करता है, वह सूर्य के समान संसार में प्रकाशित होता है और लक्ष्मीवान् होता है तथा विश्व का प्रिय होता है।

तस्योग्ररोगवेतालाः शाकिनीभूतराक्षसाः।
एते दोषा न दृश्यन्ते रक्षकाश्च भन्त्यमीं।।16।।

उसको भयंकर रोग, वैताल, शाकिनी, भूत और राक्षस आदि दोष नहीं दिखाई देते, अपितु उसके रक्षक होते हैं।

अग्निसर्पभयोत्पाता भूपालाश्चोरविग्रहाः।
एते दोषाः प्रणश्यन्ति रक्षकाश्च भवन्त्यमी।।17।।

अग्नि, सर्प, सात प्रकार के भय, उत्पात, राजभय, चोरभय और विग्रह (युद्ध-कलह) ये सभी दोष इस स्तोत्र के पाठ करते रहने से नष्ट हो जाते हैं और ये सब रक्षक बन जाते हैं।

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