।। जैन रक्षा-स्तोत्रम् ।।

जैनरक्षामिमां भक्त्या प्रातरूत्थाय यः पठेत्।
इच्छितान् लभते कामान् सम्पदश्च पदे पदे।।18।।

जो व्यक्ति प्रातःकाल उठकर भक्तिपूर्वक इस जैन-रक्षा-स्तोत्र को पढ़ता है,उसकी सम्पूर्ण मनोकामनाएं सफल होती हैं और वह पद पद पर लक्ष्मी को प्राप्त करता है।

श्रावणे शुक्लगेऽष्टम्यां प्रारम्भ स्तोत्रमुत्तमम्।
अभिषेकं जिनेन्द्राणां कुर्याच्च दिवसाष्टकम्।।19।।

इस श्रेष्ठ स्तोत्र को श्रावण शुक्ला। अष्टमी को आरम्भ करके आठ दिन तक भगवान् जिनेन्द्र का अभिषेक करे।

ब्रह्मवर्यं विधातव्यमेकभुक्तं तथौव च।
शुचिना शुभ्रवस्त्रेणा वालंकारेणा शोभनं।।
नरो वापि तथा नारी शुद्धभावयुतोऽपि सन्।
दिनं दिनं तथा कुर्यात् जाप्यं सर्वार्थसिद्धये।।20-21।।

(स्तोत्र पाठ करने वाला) ब्रह्चर्य धारण करे, एक बार भोजन करे, पुरूष हो या स्त्री पवित्र सफेद वस्त्र पहन कर और अलंकार धारण कर सम्पूर्ण मनोरथों की सिद्धि के लिए भावपूर्वक प्रतिदिन इसका जाप करे।

एकायां तु विधातव्यमुद्यापनमोहत्सवम्।
पूजाविधिसमायुक्तं कर्तव्यं सज्जनैर्जनैः।।22।।

सज्जन मनुष्यों को एकम को पूजा-विधि सहित उद्यापन महोत्सव करना चाहिए।

इति जैनरक्षा-स्तोत्रम्

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