|| विनय सम्पन्नता ||
jain temple253

सम्यक्चारित्र को अपनी शक्ति के अनुसार बड़े आदर भाव से धारण करना चाहिए। चारित्र जितना धारण करोगे उतना ही कर्मों का भार हल्का होता जायेगा। आत्मा शुद्ध होती जायेगी। विषय भोगों में लिप्त रहना पशुओं के समान जीवन है। विषयों से यथासंभव अपने आत्मा को बचाना मनुष्य जीवन है। अतः मनुष्य जीवन की शोभा चारित्र से है। सम्यग्दृष्टि देव भी अपनी पर्याय में चारित्र पालन नहीं कर सकते। अतएव वे मनुष्य भव पाने के लिये लालायित रहते हैं, कि हम कब मनुष्य देह पाकर संयम धारण करें और संयम पालन करके अजर अमर मुक्त हो जावें। ऐसे महŸवशाली चारित्र को यथाशक्ति अवश्य धारण करना चाहिए।

इस तरह बड़े आदर भाव से चारित्र पालन करना चारित्र विनय है।

सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान, सम्यक्चारित्र के आचरण करने वाले मुनिराजों का, ऐलक, क्षुल्लक आदि व्रती पुरुषों की विनय करना, आचार्य महाराज, उपाध्याय महाराज की विनय करना, उनको हाथ जोड़ मस्तक झुकाकर, नमस्कार करना, उनको ऊँचे आसन पर बिठाने के बाद आप नीचे आसन पर बैठना उनके आने पर विनय से उठ कर खड़े हो जाना उनके कहने पर बैठना, जब वे चलें तो उनके पीछे-पीछे चलना इत्यादि उपचार विनय है।

गृहस्थों को अपने धर्म गुरुओं का, विद्यगुरुओं (पढ़ाने वालों) का, संबंध गुरुओं (माता पिता आदि) का तथा गुणगुरुओं (गुणवान व्यक्तियों) का यथायोग्य विनय करना चाहिए।

विनय के बिना मनुष्य अपनी उन्नति कभी नहीं कर सकता।

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