अर्थ - एकम के रोज एक बानी, एक द्रव्य, एक आकाश, एक धर्म, एक अधर्म, पड़वा का शुद्ध हृदय से विचार करना।
अर्थ - दुतिया के रोज सिद्ध संसारी जीवत्रस स्थावर दो भेद, स्व और पर जीवों पर दया राग द्वेष का त्याग चिन्तवन करो।
अर्थ - तृतीय के रोज त्रैपात्र उत्तम, मध्यम, जघन्य तथा पात्र, कुपात्र, अपात्र का स्वरूप विचार कर दान देना। तीन समय सामायिक करना उत्पाद, व्यय ध्रौव्य इनकी सत संज्ञा है। सही द्रव्य का लक्षण है। मन, वच, तन, शुद्ध करो। यह समाधि है। ऐसा मनन कर आत्मा को पवित्र बनाना।
अर्थ - चैथ के दिन चार प्रकार का दान, अहार दान, औषधि दान, अभय दान, विद्या दान, जानो। चार प्रकार आराधन, सम्यग्दर्शन ज्ञान, चारित्र, तप इनका चिन्तवन करना, (१) चार भावना सज्जनों से मिलता, (२) विद्वानों से गुणानुराग, (३) दीन दुखी जीवों पर दया, (४) विपरीत परणति बालांे पर मध्यस्थ भाव रक्खो। चार प्रकार बंध प्रकृति, स्थिति, अनुराग, प्रदेश इन चारों से निज आत्मा को भिन्न जानकर भावना भानी चाहिए।
अर्थ - पंचमी के दिन पाँच लब्धि क्षयोपशम, विशुद्धि, देशना, प्रायोग्य, करण को पाकर पंच परमेष्ठी श्री अरहंत सिद्ध, आचार्य उपाध्याय, सर्व साधु का ध्यान कर। पांच प्रकार की स्वाध्याय बांचना, प्रचना, अनुप्रेक्षा, आम्नाय, धर्मोपदेश कर तैंतालिस लाख योजन, के पांच पैंताले, ऋजु, विमान पहिले नरक का सीमंतक बिल, ढाई दीप, सिद्ध सिलां, सिद्ध क्षेत्र जानो।
अर्थ - छठ के दिन छः लेश्या, कृष्ण, नील, कापीत, पीत, पद्म, शुक्ल के परिणामों को जानकर अशुभ का त्याग शुभ का ग्रहण करो श्रावक के षट् कर्म देव पूजा, गुरु उपासना, स्वाध्याय, संयम, तप, त्याग, इनका शक्ति के अनुसार धारण करे। पुद्गल के छः भेद स्थूलस्थूल स्थूल, स्थूलसूक्ष्म, सूक्ष्मस्थूल, सूक्ष्म, सूक्ष्मसूक्ष्म, छः काल सुखमासुखमा, सुखमा, सुखमादुखमा, दुखमा, सुखमा, दुखमाए दुखमादुखमा का जानकर सुखी बनो।
अर्थ - सप्तमी को सात नरक से धर्मा, वंशा, मेघा, माधवी, अरिष्टा, अंजना, मेघवी से भयभीत हो पापों का त्याग करो। जिन गृह, जिन प्रतिमा बनवाना, प्रतिष्ठा करवाना, पूजा करना, तीर्थ वंदना, शास्त्र लिखवाना, चार संघ (मुनि, अर्जिका, श्रावक, श्राविका) की सेवा भक्ति करना, धन लगाना। सातनय, नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजु सूत्र, शब्द, समभिरूढ़ एवं भूत, इन सातों का स्वरूप विचार करो। सात तब जीव अजीव, आश्रव, बंध, संवर, निर्जरा, मोक्ष हे सज्जन, इनके स्वरूप का अटल रूप से श्रद्धान कर सम्यक्त प्राप्त करो।
अर्थ - अष्टमी के दिन सम्यग्दर्शन के अष्ट अंग निशंकित, निकांक्षित, निर्वि चिकित्सित, अमूढ़ दृष्टि, उपगूहन, स्थितिकरण, वात्सल्य प्रभावना को धारण करो। पांच ज्ञान मति, श्रुति, अवधि, मन पर्यय, केवल। तीन कुज्ञान, कुमति, कुश्रुति, कुअवधि इन आठों को जानना। आठ द्रव से जल, चंदन, अक्षत, पुष्प, नैवेद्य, दीप धूल फल से भगवान् का पूजन करो आठ योग यम, नियम, ध्यान, समाधि, आसन, प्रत्याहार, प्राणायाम, सामायिक को मन शुद्ध कर अभ्यास करें।
अर्थ - नोमी के दिन शील की नव बाड़ स्त्री के पाव में रहना, प्रेम से उसको देखना मीठे वचन बोलना, शरीर को साफ करके सजाना, स्त्री की खांट पर सोना, भोगे हुए भोगों का चिन्तवन करना, पुष्टि कारक भोजन करना, काम को बढ़ाने वाली कथा का करना, भरपेट भोजन करना ये ब्रह्मचारी के त्यागने योग्य बातें हैं। जिनागम में कहा है नौ प्रायश्चित, आलोचना, प्रतिक्रमण, तदुभय, विवेक, व्युत्सर्ग, तपरछेद, परिहार, उपस्थापना, भय, विनय, वैया व्रत इन पापों का त्याग करना। नव क्षायिक नौ भेद ज्ञान, दर्शन, दान, लोभ, भोग, उपभोग, वीर्य सम्वक्त, चरित्र जानों नवकषाय हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, स्त्री वेद, पुरुष वेद, नपुंसक वेद, को जानो।
अर्थ - दशमी के दिन दश रूप, पुद्गल पर्याय शब्द, बंध, सूक्ष्म, स्थूल, संस्थान, भेद, तम, छाया, आतप, उद्वोत, रूप जानो। हे चेतन इस प्रकार के बंध उदय, उदीर्णा, उत्र्कषण, अपकर्षण, बंध, सत्ता, संक्रमण, उपशम, निन्धित, निकांक्षित का त्याग कर। जन्म के दश अतिशय परोव रहित शरीर, मल मूत्र सहित, दूध के समान रुधिर, सम चतुरस्र संस्थान, वज्र वृषभ, नाराच संहनन, सुंदर स्वरूप एक हजार आठ लक्षण, सुगंध मय शरीर, अप्रमित वीर्य, हित मित वचन के भेद से जानो। दस प्रकार का परिग्रह क्षेत्र, वास्तु, हिरण्य सुवर्ण धन, धान्य, दासी, दास, कुप्य, भांड, इनका आवश्यकतानुसार, परिणाम कर घटा के पुण्य बंध करना चाहिए।
अर्थ - एकादशी के दिन ग्यारह भाव नव क्षायिक देा उपशम के भेद जानो अहमिन्द्र के ग्यारह भेद जानो। नव ग्रैवेयिक के नव और पंच पांचोत्तरे का एक और नव अनुदिश का एक इस प्रकार ग्यारह भेद जानो। देवलोक के ग्यारह योग सत्य मन, असत्य मन, उभय मन, अनुभय मन, सत्य वचन, असत्य वचन, उभय वचन, अनुभय वचन, बैक्रेयिक काय, मि़श्र काय, कार्माण काय को जानो। मुनिराज के ग्यारह अंगों कों। अपाचारण सूत्र कृतांग, स्थानांग, समवायांग व्याख्या प्रज्ञप्ति, ज्ञात्र कथांग, उपासका ध्ययनांग, अन्तः कृत दशांग अनुत्तरोत्तपाद दशांग, प्रश्न व्याकरणांग, विपाक सूत्रांग पढ़ के स्व पर कल्याण करते हैं।
अर्थ - द्वादशी के दिन बारह प्रकार का उपयोग, आठ ज्ञानोपयोग, मति, श्रुति, अवधि, मनः पर्यय, केवल ज्ञान के भेद से तथा चार दर्शनापयोगी चक्षु, अचक्षु, अवधि, केवल दर्शन जानना। बारह प्रकृति दोष, क्रोध की चार मान की चार आरती शोक, भय, जुगुप्सा भेद रूप जानो, चक्रवर्ती बारह होते हैं, बारह अवृत्त पांच प्रकार स्थावर हिंसा, त्रस हिंसा का त्याग, पांच इन्द्रिय छटे मन का वश करना।