|| अथ श्री पखवाड़ा भाषा टीका ||
चैपाई - तेरसि तेरह श्रावक धान, तेरह भेद मनुज पहचान।
         तेरह राग प्रकृति सब निंद, तेरह भाव अयोग जिगन्द।।

अर्थ - तेरस के दिन श्रावक के १३ भावों को १ पाक्षिक श्रावक, १३ अवृत्त सम्यग्दृष्टि श्रावक, ११ भेद पंचम गुण स्थानी श्रावके के १ दर्शन प्रतिमा २ व्रत ३ सामायिक ४ प्रौषधौपवास ५ सचित्तत्याग ६ रात्रिभुक्ति त्याग ७ ब्रह्मचर्य ८ आरंभ त्याग ९ परिग्रह त्याग १॰ अनुमति त्याग ११ छुल्लक का ऐलक के भेद से तेरह स्थानों पर यथा-क्रम से पालन करके आत्मा को शुद्ध करे।

उत्तम, मध्यम, जघन्य तीनों भोग भूमियों में पर्याप्त अपर्याप्त के भेद से छः तथा म्लेक्ष भूमि में पर्याप्त अपर्याप्त और कुभोग भूमि में पर्याप्त अपर्याप्त लब्धि पर्याप्त तथा आर्यभूमि मे पर्याप्त अपर्याप्त के भेद से मनुष्य के तेरह भेद हैं। राग की १३ प्रकृति चार लोभ की चार माया की तथा हास्य रति नपुँसक, वेद, स्त्री वेद, पुरुष वेद के रूप जानो।

तेरस के दिन क्षायिक सम्यक्त्व क्षायिक चारित्र, क्षायिक दर्शन क्षायिक ज्ञान,क्षायिक दान, क्षायिक लाभ, क्षायिक योग, क्षायिक उपभोग, क्षायिक वीर्य ये क्षायिक की नौ तथा मनुष्य गति असिद्धत्व ये औदयिक भाव वै जीवत्व भव्यत्व ये दो पारिणामिक भाव ऐसे १३ प्रकृतियों के चरम समय में नाश करके अरहंत भगवान् मोक्षधाम मंे विराजमान होते हैं। (वे ही हमारे कल्याण के हेतु हो)।

चैपाई - चैदस चैदह पूरब जान, चैदह वाहिज अंग बखान।
         चैदह अन्तर परिगृह डार, चैदह जीव समाय विचार।।

अर्थ - चतुर्दशी के दिन १४ पूर्व उत्पाद अग्रयणी, वीर्यानुवाद, अस्ति नास्ति प्रवाद, ज्ञानप्रवाद, कर्मप्रवाद, सत्प्रवाद, आत्मप्रवाद, प्रत्याख्यान, विद्यानुवाद, कल्याणवान, प्रणानुवाद, क्रियााविशाल, लोक विन्दु जानो १४ अंग बाह्म श्रुतज्ञान, सामायिक चतुर्विशातिस्तवन, वंदना, प्रतिक्रमण, वैनयिक कृतिकर्म, दश वैकालिक, उत्तराध्ययन, कल्पव्यवहार, कल्पा कल्प, महाकल्प, पुंडरीक महापुंडरीक, निषिधिका को जानना।

१४ प्रकार का अन्तरंग परिग्रह, मिथ्यात्व, हास्य, रति, अरति, शोक, भय, जुगुप्सा, वेद रागद्वेष, क्रोध, मान, माया, लोभ का त्याग करना।

१४ जीव समास एकेन्द्रिय के दो भेद बारह सूक्ष्म, वे इन्द्रिय, तेइन्द्रिय, चैइन्द्रिय, पंच इन्द्रिय (संज्ञी असंज्ञी) ये सातों पर्याप्त अपर्याप्त दोनों प्रकार के होते हैं।

चैपाई - मावस सम पन्द्रह परमाद, करम भूमि संग्रह है अनादि।
         पंच शरीर हैं पंद्रह रूप, पंद्रह प्रकृति हरै मुनि भूप।।

अर्थ - मावस के दिन १५ प्रमाद चार प्रकार की बिकथा १ स्त्री २ भोजन ३ राज ४ अवनिपाल, चार कषाय पांच इन्द्रिय निद्रा स्नेह जानो। १५ कर्मभूमि, पांच भरत, पांच ऐरावत, पांच विदेह के भेद से जानो। पांच शरीर औदारिक, वैक्रियक अहारक तैजस कार्माण का बंध उदय सत्ता की अपेक्षा १५ भेद जानो।

१५ प्रकृति अनंतानुबंधी ४ प्रत्याख्यान ४ अप्रत्याख्यान ४ मिथ्यात सम्यक् मिथ्यात्व सम्यक् प्रकृति इनका मुनिराज नाश कर आनंद लेते हैं।

चैपाई - सोलै कषाय राह घटाय, सोल कला सम भावन भाय।
         पूरणमासी सोलै ध्यान, स्वर्ग कहे भगवान् ।।

अर्थ - १६ ध्यान। ४ प्रकार आर्त ध्यान इष्ट वियोग का चिंतवन, अनिष्टसंयोग का चिंतवन, पीड़ा का चिन्तवन, निदार बंध का चिंतवन, ४ प्रकार रौद्र, हिंसानंदी मृषानंदी स्तेयनंदी परिग्रहानदी, ४ प्रकार धर्म ध्यान, आज्ञा विचय, अपायविचय, विपाकविचय, संस्थान विचय, ४ प्रकार शुक्ल ध्यान, पृथक्तवितर्क, एकत्ववितर्क, सूक्ष्म क्रिया प्रतिपाति, सूक्ष्म क्रिया, निर्वरतनी के भेद से अशुभ का त्याग शुभ का ग्रहण करो।

(१) सौधर्म, (२) ईषान, (३) शानतकुमार, (४) महेन्द, (५) ब्रह्म, (६) ब्रह्मोत्तर, (७) लातव, (८) कापिष्ट, (९) सुक्र, (१॰) महासुक्र,(११) सतार, (१२) सहस्रार, (१३) आनत, (१४) प्राणत (१५) अरण (१६) अच्युत, ये १६ स्वर्ग जिनेन्द्र देव ने कहे हैं।

सौलह कषाय - ४ क्रोध ४ मान ४ माया ४ लोभ ये १६ कषाय के भेद जानो। सोलह कारण धर्म (१) दर्शन विशुद्धि (२) विनयसम्पन्नता (३) शीलव्रतेष्वनतिचार (४) अभीक्षण ज्ञानोपयोग, (५) संवेग (६) शक्तितस्त्यग (७) तप (८) साधुसमाधि (९) वैरूयाव्रत्यकरण (१॰) अर्हन्तभक्ति(११) आचार्य भक्ति, (१२) बहुश्रुतिभक्ति (१३) प्रवचनभक्ति (१४) आवश्यकापरिहार्णी (१५) मार्ग प्रभावना (१६) प्रवचनवात्सल्यत्व, ये सोलह कारण भावना है।

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