अर्थात-जिस प्रकार नगरों की सुरक्षा करने के लिये नगरों के चारों ओर कोट बनाये जाते हैं, जैसे कि जयपुर आदि अनेक नगरों में अब तक बने हुए हैं, उन बने हुए ऊँचे कोटों से उन नगरों की बाहरी आक्रमणकारियों से रक्षा होती हैं, उसी तरह व्रतों को सुरक्षित रखने के लिये शीलों को भी अवश्य पालना चाहिए।
पाँच अणुव्रतों के जो दिग्व्रत, देशव्रत आदि ३ गुणव्रत और सामयिक आदि ४ शिक्षा व्रत, कुल ७ शील हैं। इन सातों शीलों के भी पृथक-पृथक ५-५ अतिचार होते हैं, उनका विवरण भी तत्वार्थसूत्र, पुरुषार्थसिद्धयुपाय आदि ग्रन्थों में उल्लिखित है वहाँ से जान लेना चाहिए।
५ व्रतों और ७ शीलों को निर्दोष पालन करना ही शीलव्रतेष्वनतिचार या अनतिचार शीलव्रत भावना है।