एक मधु-मक्खी भी राजा के निकट आ बैठी वह बार-बार अपने हाथ पैरों से अपने सिर को साफ करती थीं, भोज ने अपने मंत्री से पूछा कि यह मक्खी बार-बार ऐसा क्यों करती हैं, तब मंत्री ने अपनी कल्पना से उत्तर दिया कि महाराज? यह मक्खी अपने सिर को बार-बार धुनते हुए आपसे कह रही है कि-
अर्थात् - ‘हे भोज राजन्! भाग्यवान् पुरुषों को धन संचिन नहीं करना चाहिये अपतिु उसको दान करते रहना चाहिये। कर्ण, बलि, विक्रमादित्य राजा का यश आज तक दान के कारण ही चला आ रहा है। हमने अपने छत्ते में मधु (शहद) इकट्ठा किया था, न तो उसे स्वयं ने खाया, न उसको दान किया था, परिणाम यह हुआ कि कोई लुटेरा आया और मेरा संचित धन बलात् लूट कर ले गया। ऐसा कहते हुय ये मधु मक्ख्यिां हाथ पैर मारती रहती हैं।
इस कारण सदा शक्ति अनुसार दान करते रहना चाहिये।