प्रश्न 133 - तीसरी कटनी पर क्या है?
उत्तर - तीसरी कटनी सूर्य मंडल के समान गोल हैं। इसी तीसरी कटनी पर गंध कुटी शोभायमान रहती है।
प्रश्न 134 - गंध कुटि का किंचित वर्णन कीजिए।
उत्तर - जिसमें जिनेन्द्र देव विराजमान रहते हैं। उसे गंध कुटी कहते हैं वह गंधकुटी, चंवर, छत्र, वंदनमाला, किंकणी मोतियों के हार दीपक धूपघट आदि से सजी रहती है। इस गध कुटी के मध्य सिंहासन पर एक लाल वर्ण का सहस्त्र दल कमल रहता है जिस पर भगवान चार अंगुल अधर विराजमान रहते हैं।
प्रश्न 135 - भगवान के मोक्ष कल्याणक में क्या होता है?
उत्तर - जब भगवान का आयु कर्म पूरा होने को होता है तो समवसरण विघटित हो जाता है। ध्यान में लीन भगवान अपने शेष चार अघतिया कर्मों का भी नाश कर देते हैं। वे एक समय में अथवा पंच लब्धछर समय मात्र में वे परमात्मा लोक के अग्रभाग पर अनंतानंत काल सदा के लिए सिद्ध शिला पर विराजमान हो जाते हैं। उस समय चारों प्रकार के देव बड़ी भक्ति से उनके शरीर का अग्नि संस्कार करते हैं। अग्निकुमार के इन्द्र देव अपने मुकुट के अग्रभाग से अग्नि प्रज्ज्वलित करते हैं सभी देव भस्म को ललाट में लगा कर अपना जन्म धन्य करते हैं।
प्रश्न 136 - अग्नि कुमार के इन्दों के कितने भेद हैं?
उत्तर - अग्नि कुमार के इन्द्र तीन प्रकार के हैं- गाह्र्यपत्य, आह्वानीय एवं दक्षिणाग्नेन्द्र।
प्रश्न 137 - उपरोक्त तीनों इन्दों का क्या कार्य है?
उत्तर - तीर्थंकर के शरीर का संस्कार गाह्र्यपत्य इन्द्र करते हैं, गणधर देव के शरीर का संस्कार आह्वानीय इन्द्र तथा केवली के शरीर का संस्कार दक्षिणाग्नेन्द्र करते हैं।
प्रश्न 138 - तीर्थंकर गणधर तथा केवलियों के लिए किस - किस प्रकार के कुंडो की रचना होती है।
उत्तर - तीर्थंकरों के लिए चैकोर कुंड, गणधरों के लिए त्रिकोण कुंड तथा केवलियों के लिए गोल कुंड की रचना होती है।
प्रश्न 139 - क्या सभी मोक्ष जाने वाले जीवों के कल्याणक होते हैं?
उत्तर - नहीं! जिन जीवों ने तीर्थंकर प्रकृति का आश्रव, बंधकिया है केवल उन्हीं जीवों के तीर्थंकर प्रकृति उदय में आ जाने से, कल्याणक देव मानते हैं।
प्रश्न 140 - तीर्थंकर की प्रतिमाओं के चिन्हों का पता किस प्रकार चलता है?
उत्तर - भगवान के न्हवन के समय, इन्द्र भगवान के दांये पैर के अंगूठे को देखते हैं जो चिन्ह होता है उसी चिन्ह से उनकी प्रतिमा की पहचान होती है।
प्रश्न 141 - तीर्थंकरों के शरीर पर कितने चिन्ह होते हैं?
उत्तर - तीर्थंकरों के शरीर पर 1008 चिन्ह होते हैं।
प्रश्न 142 - इन्द्र कितने नामों से भगवान की स्तुति करते हैं?
उत्तर - 1008 नामों से इन्द्र भगवान की स्तुति करते हैं?
प्रश्न 143 - तीर्थंकरों के जन्म एवं मोक्ष के बारे में आगम का क्या नियम है?
उत्तर - आगम के नियम के अनुसार सभी तीर्थंकर अयोध्या में ही जन्म लेते हैं तथा सम्मेद शिखर से मोक्ष जाते हैं। इसीलिए अयोध्या एवं सम्मेदशिखर शाश्वत तीर्थ माने जाते हैं।
प्रश्न 144 - उपरोक्त नियम में परिवर्तन क्यों हुआ?
उत्तर - हुंडवसर्पिणी काल के दोष से इस नियम में परिवर्तन हुआ इस बार न तो चैबींस तीर्थंकरों ने अयोध्या में जन्म लिया और न ही सम्मेद शिखर से मोक्ष गये।
प्रश्न 145 - अयोध्या में जन्म लेने वाले तीर्थंकरों के नाम बताइये।
उत्तर - 1- श्री आदिनाथ जी 2- श्री अजितनाथ जी 3- श्री अभिनन्दननाथ जी 4- श्री सुमतिनाथ जी 5- श्री अनंतनाथ जी
प्रश्न 146 - सम्मेद शिखर से कितने तीर्थंकर मोक्ष गये?
उत्तर - बीस तीर्थंकरों ने सम्मेद शिखर से मोक्ष प्राप्त किया।
प्रश्न 147 - कौन-से तीर्थंकरों ने सम्मेद शिखर से मोक्ष प्राप्त नहीं किया?
उत्तर - 1 श्री आदिनाथजी 2 श्री वासुपूज्यजी 3 श्री नेमनाथजी 4 श्री महावीर भगवान इन चार तीर्थंकरों ने सम्मेद शिखर से मोख प्राप्त नहीं किया।
प्रश्न 148 - अयोध्या एवं सम्मेद शिखर को छोड़कर सर्वाधिक कल्याणकों वाला तीर्थंक्षेत्र कौन-से हैं?
उत्तर - वह क्षेत्र हस्तिनापुर है। कुल 12 कल्याणक हुए हैं।
प्रश्न 149 - यहां 12 कल्याणक किस प्रकार हुए हैं?
उत्तर - श्री शांतिनाथ, कुंथुनाथ एवं अरहनाथ इन तीर्थंकरों के गर्भ, जन्म, तप, केवलज्ञान ऐसे 4-4 कल्याणक हुए है।
प्रश्न 150 - श्री शांतिनाथ कुंथुनाथ अरहनाथ इन तीर्थंकरों की विशेषता बतलाइये।
उत्तर - तीनों तीर्थंकर, चक्रवर्ती, तीर्थंकर एवं कामदेव इन तीन-तीन पदो ंके धारक थे ये क्रमशः 16वे, 17वें एवं 18वें तीर्थंकर थे।
प्रश्न 151 - श्री शांति, कुंथु, अरहनाथ भगवान का मोक्ष कल्याणक कहां हुआ था?
उत्तर - इनका मोक्ष कल्याणक श्री सम्मेद शिखर में हुआ था
प्रश्न 152 - दो नामों से कौन-से तीर्थंकरों को जाना जाता है।
उत्तर - ऐसे नोवें तीर्थंकर श्री पुष्पदंतजी हैं जिनका दूसरा नाम श्री सुविधनाथ जी भी है।
प्रश्न 153 - ऐसे कौन से तीर्थंकर हैं, जिनके पांचों कल्याण एक ही स्थान पर हुए हैं और कहां?
उत्तर - ऐसे बारहवें तीर्थंकर श्री वासुपूज्य जी हैं इनके पांचों कल्याणक चम्पापुर जी में हुए हैं।