।। चैबीस तीर्थंकर एवं विद्यमान बीस तीर्थंकर ।।

प्रश्न 111 - आलयांग जाति के कल्पवृक्ष कार्य करते हैं?

उत्तर - आलयांग कल्पवृक्ष, स्वास्तिक नंद्यावर्त आदि सोलह प्रकार के दिव्य भवनों को प्रदान करते हैं।

प्रश्न 112 - दीपांग जाति के कल्पवृक्षों का कार्य बताइये।

उत्तर - दीपांग जाति के कल्पवृक्ष शाखा, प्रवाल, फल, फूल और अंकुर आदि के द्वारा जलते हुए दीपकों के समान प्रकाश को प्रदान करते हैं।

प्रश्न 113 - भाजनांग जाति के कल्पवृक्षों का कार्य बताइये।

उत्तर - भाजनांग जाति के कल्पवृक्ष स्वर्ण आदि से निर्मित झारी कलश, गागर, चामर, और आसनादि देते हैं।

प्रश्न 114 - मालांग कल्पवृक्ष क्या प्रदान करते हैं?

उत्तर - मालांग जाति के कल्पवृक्ष, बेले, तरू, गुच्छ और लताओं से उत्पन्न हुए सोलह हजार रूप पुष्पों की मालाओं को प्रदान करते हैं।

प्रश्न 115 - तेजांग जाति के कल्पवृक्षों का कार्य बताइये।

उत्तर - ज्योतिरंग (तेजरांग) जाति के कल्पवृक्ष मध्य दिन के करोड़ों सूर्यों की किरणों के समान होते हुए सूर्य चन्द्र की रोशनी को फीका करते हैं।

प्रश्न 116 - समवसरण की सातवीं भूमि की रचना कैसी हैं?

उत्तर - सावतीं भूमि का नाम भवन भूमि हैं। यहां बने हुए भवनों में जिन प्रतिमायें विराजमान हैं तथा जिनाभिषेक होता रहता है। देव देवियां नृत्य संगीत से भक्ति करते रहते है। इसके दोनों पाश्र्वभागों की प्रत्येक गली के मध्य में नौ-नौ स्तूप हैं। जिनमें अर्हंत तथा सिद्धों की प्रतिमायें विराजमान हैं। इसके आगे स्फटिक कोट है जिसके द्वारों के रक्षक देव कल्पवासी देव हैं।

प्रश्न 117 - आठवीं भूमि का नाम तथा रचना बताइये।

उत्तर - आठवीं भूमि का नाम श्री मंडप भूमि है। इसके बीच-बीच में सोलह स्फटिक मणी की दीवालें हैं चार-चार गलियों के बाद दीवालों के मध्य में तीन कोठे अपने तीर्थंकर की ऊंचाई के बारह गुने ऊंचे बने हुए हैं। इन्हीं कोठों में बारह सभायें लगती हैं। भव्य जीव यहां भगवान का उपदेश ग्रहण करते हैं।

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प्रश्न 118 - समवसरण में कितनी सभायें होती हैं?

उत्तर - समवसरण मंे बारह सभायें होती हैं।

प्रश्न 119 - भगवान की पहली सभा में कौन जीव रहते हैं?

उत्तर - भगवान की पहली सभा पूर्व दिशा में रहती है। इसमें सर्व प्रथम गणधर और मुनिगण रहते हैं।

प्रश्न 120 - भगवान की दूसरी सभा में कौन-से जीव रहते हैं?

उत्तर - भगवान की दूसरी सभा आग्नेय दिशा में होती है। यहां दूसरे कोठे में कल्पवासी देवियां भगवान का उपदेश ग्रहण करती हैं।

प्रश्न 121 - तीसरा कोठा में कौन-से जीव रहते हैं?

उत्तर - तीसरा कोठ दक्षिण में होता है तथा इसमें आर्यिकायें एवं श्राविकायें होती हैं।

प्रश्न 122 - समोशरण के चैथे कौन से जीव धर्म श्रवण करते हैं।

उत्तर - भगवान के समवसरण के चैथे कोठे में ज्योतिषी चन्द्र सूर्य आदि की देवियां धर्म श्रवण करती हैं।

प्रश्न 123 - समवसरण के पांचवें कोठे में कौन-से जीव रहते हैं?

उत्तर - पांचवे कोठे में व्यंतर देवों की देवियां रहती हैं।

प्रश्न 124 - समवसरण के छठे कोठे में क्या हैं?

उत्तर - समवसरण के छठे कोठे में भवनवासी देवों की देवियां धर्म श्रवण करती हैं?

प्रश्न 125 - समवसरण के सातवें कोठे में कौन-से जीव बैठते हैं?

उत्तर - समवसरण के सातवें कोठे में भवनवसी देव बैठते हैं।

प्रश्न 126 - समवसरण के आठवे कोठे में कौन-से जीव है।

उत्तर - समवसरा के आठवे कोठे में व्यंतरवासी देव रहते हैं।

प्रश्न 127 - समवसरण का नौवां कोठा कौन-से जीवों से भरा रहता है?

उत्तर - नौवों कोठे में ज्योतिषी देव रहते हैं।

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प्रश्न 128 - समवसरण के दसवें कोठे में क्या है?

उत्तर - दशवें कोठे में कल्पवासी देव हैं।

प्रश्न 129 - समवसरण के ग्यारहवें कोठे में क्या है?

उत्तर - समवसरण के ग्यारहवें कोठे में चक्रवर्ती एवं मनुष्य होते हैं।

प्रश्न 130 - समवसरण के बारहवें कोठे की स्थिति बताइये।

उत्तर - समवसरण के बारहवें कोठे में संज्ञी पंचेन्दी्रय तिर्यंच जीव-हाथी, सिंह, व्याघ्र, हिरन आदि पशुगण बैठते हैं।

प्रश्न 131 - बारह सभाओं से आगे क्या होता है?

उत्तर - बारह सभाओं के अभ्यंतर निर्मल स्टफटिक की वेदी है इसके आगे पहली कटनी वैडूर्यमणी की है उस पर चढ़ने के लिए चार गली बारह कोठों के स्थान पर सोलह-सोलह सीडि़यां हैं इसके चारों दिशाओं में यक्षेन्द्र अपने मस्तक पर धर्मचक्र धारण किये हुए खड़े रहते हैं।

प्रश्न 132 - समवसरण में दूसरी कटनी पर क्या है?

उत्तर - दूसरी स्वर्ण कटनी पर सिंह, बैल, कमल, चक्र, माला, गरूड़, वस्त्र और हाथी इन आठ चिन्हों से युक्त ध्वजायें तथा धूपघट नव निधियां पूजन द्रव्य और मंगल द्रव्य रखे हुए हैं।

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