।। श्री अरिहंत परमेष्ठी ।।

प्रश्न 1 - पंच परमेष्ठी कौन-से काल में होता है?

उत्तर - पंच परमेष्ठी, कर्मकाल जो दुःखमा नाम का चैथा काल होता है, उसमें होते हैं। हुंडावसर्पिणी काल में तीसरे काल में भी हुए हैं। आचार्य, उपाध्याय साधु ये दुःखमा नाम के पंचम काल के अंत तक भी रहते हैं।

प्रश्न 2 - कौन-से परमेष्ठी कहां रहते हैं?

उत्तर - अरिहंत, आचार्य, उपाध्याय और साधु ये चार परमेष्ठी ढाई द्वीप की 170 कर्म भूमियों के आर्यखण्डों में विचरण करते हैं। सिद्ध परमेष्ठी लोक के अग्र भाग पर सिद्ध शिला पर शाश्वत विराजमान रहते हैं।

प्रश्न 3 - क्या ढाई द्वीप के बाहर भी कोई परमेष्ठी होते हैं?

उत्तर - नहीं! ढाई द्वीप के बाहर कोई भी परमेष्ठी नहीं होते हैं। अधोलोक उध्र्वलोक, मध्यलोक ढाई द्वीपों को छोड़कर वहां केवल अकृत्रिम जिनालय तथा जिनप्रतिमायें ही होती हैं।

प्रश्न 4 - अरिहंत परमेष्ठी किसे कहते हैं?

उत्तर - जिन्होंने चार घातिया कर्मों का नाश किया है, जो समवशरण में विराजमान रहकर भव्यों को मोक्षमार्ग का उपदेश देते हैं, जो, सर्वज्ञ वीतराग और हितोपदेशी हैं जो 46 मूल गणों से युग्त 18 दोष से रहित होते हैं। वे अरिहंत हैं।

प्रश्न 5 - अरिहंत के अन्य नाम क्या हैं?

उत्तर - वैसे तो अरिहंतो की इन्द्रों द्वारा 1008 नामों से पूजा की जाती है फिर भी प्रचलित नामों में उन्हें, अरिहंत, आप्त, जिनेन्द्र, जिन, जिनेश्वर, शंकर, ब्रह्मा, विधाता, अर्ध नारीश्वर भूतनाथ आदि नामों से जाना जाता है।

प्रश्न 6 - अरिहंत नाम की सार्थकता क्या है?

उत्तर - अरि अर्थात् शत्रु। जिन्होंने कर्म रूपी शत्रुओं का नाश किया है वे ही अरिहंत हैं यथा-कार्मारीन् हंतः-अरिहंत

प्रश्न 7 - अरिहंत भगवान को जिनेन्द्र क्यों कहते हैं?

उत्तर - अपनी पांचों इन्द्रीय तथा मन को जीत लेने से उन्हें जिन, जिनेश्वर जिनेन्द्र कहा जाता है।

प्रश्न 8 - अरिहंत भगवान को शंकर क्यों कहा जाता है?

उत्तर - क्योंकि ये अपने वचनामृत से भव्यों को शं अर्थात् सुख प्रदान करे हैं।

प्रश्न 9 - अरिहंत भगवान को ब्रह्मा क्यों कहा जाता है?

उत्तर - अरिहंत भगवान के समवशरण में चारों दिशाओं में मुख दिखने के कारण उन्हें ब्रह्मा कहा जाता है।

प्रश्न 10 - अरिहंत भगवान को अर्धनारीश्वर क्यों कहा जाता है?

उत्तर - अर्ध नारीश्वर का एक शाब्दिक अर्थ होता है। अर्ध न अरी तेषां ईश्वरः अर्थात् अर्ध-आधे, न-नहीं है,ं अरी-शत्रू, जिके, आधे शत्रू नहीं हैं, जिनके, ऐसे ईश्वर हुए अर्धनारीश्वर; अतः कर्म शत्रू आठ हैं, अरिहंत भगवान ने इनमें से चार घातिया कर्म शत्रूओं का नाश किया है अतः इन्हें अर्ध नारीश्वर कहते हैं।

प्रश्न 11 - अरिहंत भगवान को भूतनाथ क्यों कहते हैं?

उत्तर - भूत अर्थात् प्राणी। प्राणियों के स्वामी, नाथ होने से इन्हें भूतनाथ कहा जाता है।

प्रश्न 12 - आप्त किसे कहते हैं?

उत्तर - वीतरागी, सर्वज्ञ और हितोपदेशी ये तीन गुण जिनमें होते हैं वे आप्त कहलाते हैं।

प्रश्न 13 - मूलगुण किसे कहते हैं?

उत्तर - जो गुणों में मुख्य होते हैं वे मूल गुण हैं जैसे वृक्ष में जड़।

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प्रश्न 14 - अरिहंत भगवान के मूल गुण किसे कहते हैं?

उत्तर - अतिशय 34, प्रतिहार्य 8, अनंत चतुष्टय 4 मूलगुण हुए।

प्रश्न 15 - अरिहंत भगवान के उत्तर गुण कितने होते हैं?

उत्तर - अरिहंत भगवान के उत्तर गुण अनंत हैं।

प्रश्न 16 - घातिया कर्म किसे कहते हैं?

उत्तर - जो कर्म आत्मा के मूलगुणों का घात कहते हैं वे घातियां कर्म कहलाते हैं।

प्रश्न 17 - घातिया कर्म कितने हैं?

उत्तर - घातिया कर्म चार हैं।

प्रश्न 18 - घातिया कर्म कौन-कौन से हैं?

उत्तर - मोहनीय, ज्ञानावरणी, दर्शनवरणी और अन्तराय।

प्रश्न 19 - अरहंत का शाब्दिक अर्थ क्या है?

उत्तर - अर्हंत् अर्थात् पूज्य, जो पूज्य हो गये हें वे अरहंत हैं।

प्रश्न 20 - अरिहंत भगवान में कौन-कौन से अठारह दोष नहीं है?

उत्तर - (1) जन्म, (2) जरा, (3) प्यास, (4) भूख, (5) आश्चर्य (6) पीड़ा, (7) दुख, (8) रोग (9) शोक, (10) मोह, (12) भय (13) निद्रा (14) चिंता (15) पसीना (16) राग (17)द्वेष (18) मरण।

प्रश्न 21 - जन्म किसे कहते हैं?

उत्तर - आत्मा के नवीन शरीर धारण करने को जन्म कहते हैं।

प्रश्न 22 - जरा किसे कहते हैं?

उत्तर - बुढ़ापे को जरा कहते हैं, जिससे शरीर जीर्ण होकर कमजोर हो जाता है, शरीर में झुर्रियां पड़ जाती हैं। तथा इन्द्रियां ठीक प्रकार से कार्य नहीं करती हैं।

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