।। चैबीस तीर्थंकर एवं विद्यमान बीस तीर्थंकर ।।

प्रश्न 70 - भगवान के न्हवन का कलश कितना बड़ा होता है?

उत्तर - भगवान के न्हवन का कलश आठ योजन गहरा चार योजन चैड़ा एवं एक योजन विस्तृत मुख वाला होता है।

प्रश्न 71 - ऐरावत हाथी कैसा होता है?

उत्तर - आभियोग जाति के देव विक्रिया से ऐरावत हाथी का रूप बनाते हैं। ऐरावत हाथी का रूप एक लाख योजन विस्तरित हो जाता है इसके दिव्य मालाओं से युक्त बत्तीस मुख होते हैं एक-एक मुख में रत्नों से निर्मित 4-4 दांत होते हैं एक-एक दांत पर एक-एक सरोवर एवं सरोवर में कमल बना होता है। एक-एक कमल खंड में 32 महापद्म होते हैं जो एक-एक योजन के होते हैं इन एक-एक महाकमलों पर एक-एक नाट्यशाला होती हैं एक-एन नाट्यशाला में 32-32 अप्सराये नृत्य करती हैं।

प्रश्न 72 - कौन सा देव ऐरावत हाथी बनता हैं?

उत्तर - इन्द्र की आज्ञा से आभियोग जाति का बालक नाम का देव विक्रिया से ऐरावत हाथी बनता है।

प्रश्न 73 - पांडुक शिला कहां पर हैं?

उत्तर - प्रत्ये कमेरू के पांडुक वन की विदिशाओं में अर्धचंद्राकार शिलायें हैं उन्हें सामान्य से पांडुक शिला कहते हैं वैसे उनके अलग-अलग नाम हैं। ये ऐशानदिशा के क्रम से 1 - पांडुकशिला, 2 - पांडुकम्बला, 3 - रक्तशिला और, 4 - रक्तकम्बला

प्रश्न 74 - पांडुकशिला का कितना विस्तार है?

उत्तर - वह पवित्र पांडुकशिला सौ योजन लम्बी, पचास योजन चैड़ी एवं आठ योजन ऊंची है।

प्रश्न 75 - तीर्थंकरों के अभिषेक का क्रम बताइये कौन-कौन से तीर्थंकर का अभिषेक कहां-कहां होता है?

उत्तर - पाण्डुकशिला पर भरत क्षेत्र में जन्म लेने वाले तीर्थंकरों का, पाण्डुकम्बला शिला पर पश्चिम विदेह के तीर्थंकरों का एवं रक्त कम्बला शिला पर पूर्व विदेह क्षेत्र के तीर्थंकरों का अभिषेक होता है।

प्रश्न 76 - पाण्डुकादि शिलायें कितनी होती हैं?

उत्तर - पाण्डुकादि शिलायें बीस होती हैं। एक मेरू पर चार होती हैं।

प्रश्न 77 - क्या सभी मनुष्यों के कल्याणक होते हैं?

उत्तर - सभी मनुष्यों के कल्याणक नहीं होते हैं। जिन जीवों ने तीर्थंकर प्रकृति का बंध किया है वे ही उदय आने पर तीर्थंकर होते हैं।

प्रश्न 78 - क्या सभी तीर्थंकरों के पंचकल्याणक होते हैं?

उत्तर - सभी तीर्थंकरों के पंचकल्याणक नहीं होते हैं दो तीन भी होते हैं।

प्रश्न 79 - पांच कल्याणक कौन-कौन से तीर्थंकरों के होते हैं?

उत्तर - पांच भरत एवं पांच ऐरावत दश क्षेत्रों में जन्म लेने वाले तीर्थंकरों के पांच कल्याणक होते हैं।

प्रश्न 80 - दो तीन चार कल्याणक कौन-से तीर्थंकरों के होते हैं?

उत्तर - एक सौ साठ विदेह क्षेत्रों में जन्म लेने वाले तीर्थंकरों के दो, तीन, चार एव पांच कल्याणक भी होते हैं।

प्रश्न 81 - विदेह क्षेत्र के तीर्थंकरों से तीन कल्याणक कैसे होते हैं?

उत्तर - विदेह क्षेत्र में सदा चतुर्थकाल प्रवर्तमान रहता है केवली श्रुत केवली के पाद मूल में जो मनुष्य सोलह कारण भावनाओं का चिंतवन करते हैं, उसी भव में तीर्थंकर प्रकृति का उदय आ जानेपर उनका, गर्भ एवं जन्म कल्याणक नहीं होता शेष दीक्षा, ज्ञान एवं निर्वाण कल्याणक होते हैं।

प्रश्न 82 - विदेह क्षेत्र के तीर्थंकरों के दो कल्याणक कैसे होते हैं?

उत्तर - जब विदेह क्षेत्र में कोई मुनिराज सोलह कारण भावनाओं का चिंतवन करते हैं, उसी भव में उदय आ जाने से उनका गर्भ, जन्म, दीक्षा कल्याणक नहीं मनाया जा सकता है। उनके ज्ञान व मोक्ष कल्याणक मनाये जाते हैं।

प्रश्न 83 - दीक्षा कल्याणक कैसे मनाया जाता है।

उत्तर - जब भगवान को किसी निमित्त से वैराग्य होता है तब लौकान्तिक देव आकर भगवान की वैराग्य भावना तथा भगवान की स्तुति करते हैं देवों द्वारा लाई हुई पालकी में बैठकर वन में पहुंचते हैं। रत्नशिला पर पूर्व या उत्तर मुख से बैठकर ऊँ नमः सिद्धेभ्यः मंत्र का उच्चारण कर पंचमुष्ठी केश लौंच करते हैं तथा नग्न दिगम्बर दीक्षा लेकर ध्यान में लीन हो जाते हैं। उसी समय उन्हें मनः पर्यय चैथा ज्ञान प्रकट हो जाता है। इन्द्र उनके केशों को रत्नपिटारे में रखकर क्षीर समुद्र में क्षेपण करते हैं। भगवान जन्म से मति श्रुत अवधि तीन ज्ञान के धारक होते हैं।

प्रश्न 84 - क्षीर समुद्र का जल कैसा होता है?

उत्तर - क्षीर समुद्र का जल जीव रहित दूध के समान सफेद धवल होता है। इसीलिए इसे क्षीर समुद्र कहते हैं।

प्रश्न 85 - केवलज्ञान कल्याणक कैसे मनाया जाता है?

उत्तर - जब भगवान, शुक्ल ध्यान के द्वारा धातिया कर्मों का नाश कर देते हैं तो लोकालोक को प्रकाशित करने वाला उन्हें केवलज्ञान प्रकट होता है। भगवान बीस हजार हाथ ऊपर जाकर, कुबेर द्वारा अर्धनिमिष मात्र में बनाये गये समवस्रण के मध्य गंधकुटी के कमलासन के ऊपर अधर विराजमान हो जाते हैं। समवसरण में सात भूमियों के बाद आठवीं श्री मंडप नाम की सभा भूमि में बारह सभायें लगती हैं। भगवान का एक मुख होते हुए भी चारों दिशाओं में मुख दिखते हैं, देव, देवियां, मनुष्य तिर्यंच वहां भगवान का उपदेश सुनते हैं। यद्यपि भगवान का उपदेश अर्धमगधीभाषा में होता है फिर भी सभी को अपनी अपनी भाषा में समझ में आ जाता है।

प्रश्न 86 - भगवान की वाणी किस प्रकार खिरती है?

उत्तर - भगवान की वाणी ऊँकार रूप में मेघगर्जन के समान खिरती है।

प्रश्न 87 - प्रमुख श्रोता कौन होते हैं?

उत्तर - प्रमुख चक्रवर्ती या सम्राट, भगवान के प्रमुख श्रोता होते हैं।

प्रश्न 88 - भगवान की वाणी किसके बिना नहीं खिर सकती हैं?

उत्तर - भगवान की वाणी गणधर के बिना नहीं खिर सकती है।

प्रश्न 89 - प्रत्येक तीर्थंकर के कितने गणधर होते हैं?

उत्तर - प्रत्येक तीर्थंकर के अनेक गणधर होते हैं।

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