|| साधु-समाधि ||
jain temple261

मुनि यदि किसी तीर्थ क्षेत्र की ओर विहार कर रहे हों, मार्ग में उनको कोई व्यक्ति समाधि मरण का इच्छुक मरणासन्न प्रतीत हो तो वे अपना विहार भी रोक करके पहले उस मृत्यु के निकट पहुंचे हुए व्यक्ति का समाधि पूर्वक मरण कराते हैं। उसको आत्महितकारी उपदेश देकर उसके चित्त में शांति, वैराग्य, आत्म भावना उत्पन्न करते हैं। उनके मन से सांसारिक मोह दूर कराने की चेष्टा करते हैं। उसके हृदय में धर्म का अंकुर उत्पन्न करते हैं, उसको णमोकार मंत्र सुनाते हैं। इस तरह से उसको भाव निर्मल करने का प्रयत्न करते हैं, जिससे उसको शुभ आयु का बंध होकर शुभ गति प्राप्त हो।

जीवन्धर कुमार ने मरणोन्मुख कुत्ते को णमोकार मंत्र सुनाया, कुत्ते ने शांति से णमोकार मंत्र सुना, तत्काल उसको देव आयु का बंध होकर वह पशु पर्याय त्याग कर देव हो गया। भगवान् पाश्र्वनाथ ने जलते हुए नाग नागिनी का अंत समय देखकर उनको समाधि मरण कराया जिससे वे मर कर धरणीन्द्र पद्मावती देव देवी हो गये।

इस तरह समाधिमरण में सहायक होना महान् उपकार हैं, अतः अपने मित्र को शुभ गति प्राप्त कराने के लिये समाधिमरण में उसको अवश्य सहायता देनी चाहिये। मरते समय मनुष्य न बोल सकता है, न कुछ पाठ स्मरण कर सकता है इसलिए उसके हितैषी मित्रों का प्रधान कर्तव्य है कि उस समय उसको वैराग्यवर्द्धक श्लोक, पद्य, गद्य पाठ सुनावें।

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