।। वीर वन्दना ।।

जातिस्मरण हुआ जब उनको। दीक्षा लेने चल दिये वन को।।32।।
बारह वर्ष कठिन तप करके। केवलज्ञान प्रगट हुआ उनके।।33।।
प्रथम देशना विपुलाचल पर। प्रगटी शिष्य मिले जब गणधर।।34।।
तीस वर्ष तक समवसरण में। दिव्य देशना दी जिनवर ने।।35।ं
पावापुर से मोक्ष पधारे। तीर्थंकर महावीर हमारे।।36।।
सबने दीपवली मनाई। तब से ही दीवाली आई।।37।।
चला वीर संवत्सर जग में। सर्वाधिक प्राचीन सुखद है।।38।।
कार्तिक शुक्ला एकम तिथि से। प्रारंभ होता नया वर्ष है।।39।।
महावीर की जय सब बोलो। आत्मा के सब कल्मष धो लो।।40।।

शंभु छनद

प्रभु महावीर का चालीसा, जो चाहिस दिन तक पढ़ते हैं।
उनकी स्मृति में दीवाली के, दिन दीपोत्सव करते हैं।।
विघ्नों का शीघ्र विलय होकर, उनको मनवांछित फल मिलता।
लौकिक वैभव के साथ साथ, आध्यात्मिक सौख्यकमल खिलता।।1।।

पच्चिस सौ उनतिस वीर संवत्, शुभ ज्येष्ठ कृष्ण मावस तिथि में।
रच दिया ज्ञानमति गणिनी की, शिष्या ‘‘चन्दनामती’’ मैंने।।
पावापुर में जलमंदिर का, दर्शन कर मन अति हर्षित है।
प्रभु महावीर के चरणों में, मेरी यह कृती समर्पित है।।2।।

रत्नत्रय की हो वृद्धि प्रभो, बोधी समाधि की प्राप्ती हो।
नश्वर इस मानव तन द्वारा, अविनश्वर पद की प्राप्ती हो।।
उससे पहले प्रभु आर्त रौद्र, ध्यानों की सहज समाप्ती हो।
मैं धर्मध्यान में रम जाऊं, तब ही सच्ची सुख शांती हो।।3।।

मनोकामना सिद्धि

मण्डल विधन का नक्शा विधान की रचयित्री

पूज्य प्रज्ञाश्रमणी आर्यिका श्री नंदनामती माताजी

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