जयमाला
तर्ज-हम लाए हैं तूफान से......
हम आए हैं प्रभु पास में, पूजा रचना को। जयमाल के माध्यम से, निज व्यथा सुनाने को।।टेक.।। केवल जनम मरण में ही, पर्याय बिताई। कुछ पुण्ययोग से ही, त्रसपर्याय अब पाई।। शक्ती मिले चिन्तन करें, आतम जगाने को। जयमाल के माध्यम से, निज व्यथा सुनाने को।।1।। स्वर्गों के सुख भोगे पशू की, योनि भी पाई। नरकों में रो रोकर वहां की, आयु बिताई।। नरकों में रो रोकर वहां की, आयु बिताई।। नरतन प्रभो सार्थक करूं, निज शान्ति पाने को। जयमाल के माध्यम से, निज व्यथा सुनाने को।।2।। सम्यक्त्व की महिमा से, आतम शुद्ध बनाऊं। शुभ देव शास्त्रगुरू के प्रति, कर्तव्य निभाऊं।। फिर ‘‘चन्दनामती’’ क्रम से, स्वर्ग मोक्ष पाने को। जयमाला के माध्यम से, निजव्यथा सुनाने को।।3।। शनिग्रह से मेरी मानसिक, व्यथाएं बढ़ी हैं। परिवार में कलह व कष्ट, की ये घड़ी है।। बस इसलिए तुमसे कहा, संकट मिटाने को। जयमाल के माध्यम से, निज व्यथा सुनाने को।।4।। ऊँ ह्मीं शनिग्रहारिष्टनिवारक श्रीमुनिसुव्रतजिनेन्द्राय जयमाला पूर्णाघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधार, दिव्य पुष्पांजलिः।
अष्टक-सोरठा
स्वर्गमोक्षदातार, तीर्थंकर की भक्ति है। सिद्ध सौख्यसाकार, करती आतमशक्ति है।। इत्याशीर्वादः