।। णमोकार मंत्र का व्रत और जाप्य ।।

jain temple367

यह पढ़ कर वह जो चारों तरफ कुण्डली खींचकर बज्रमय कोट रखा है उसके ऊपर चारों तरफ चुटकी बजावे। इसका मतलब है कि जो उपद्रव करने वाले हैं वे सब चले जावें। मैं बज्रमयी कोट क अन्दर व बज्रशिला पर बैठा हूं। इस रक्षामन्त्र के जपने से जाप करते हुए के ध्यान में सांप, शेर, बिच्दू, व्यन्तर, देव देवी, आदि कोई भी विघ्न नहीं कर सकते।

मन्त्र सिद्ध करने के समय जो देव-देवी डरावना रूप धारण कर आवेगा तो भी उस बज्रमयी कोट के अन्दर नहीं आ सकेगा। अगर शेर वगैरह पास से गुजरेगा तो भी आप को उसे देख सकेंगे किन्तु वह जप करने वाले को मायामय बज्रकोट की ओट हाने से नहीं सकेगा। जपने वाले को अगर कोई तीर-तलवार वगैरह से घात करेगा तो उस स्थान का रक्षक देव उसको वहीं कील देगा। वह इस रक्षामन्त्र को जपने वाले का घात नहीं कर सकेगा। अनेक मनि-श्रावकों के घातक इस रक्षामंत्र के स्मरण से कीले गये हैं और उनकी रक्षा हुईै।

नोट - जो बगैर रक्षामन्त्र के मन्त्र सिद्ध करने बैठते हैं व ेया तो व्यन्तरों आदि की विक्रिया से डर कर मन्त्र जपना छोड़ देते हैं या पागल हो जाते हैं। इसलिए मंत्र साधन करने से पहले रक्षा का मंत्र जप लेना चाहिए। इस मन्त्र में हाथ फेरने की क्रिया सिर्फ गृहस्थ के वास्ते है। मुनि के तो मन से ही संकल्प होता है।

द्वितीय रक्षामन्त्र

ऊँ णमो अरहंताणं ह्मां हृदयं रक्ष रक्ष हुं फट् स्वाहा
ऊँ णमो सिद्धाणं ह्मीं शिरो रक्ष रक्ष हुं फट् स्वाहा
ऊँ णमो आयरियाणं ह्मूं शिखां रक्ष रक्ष हुं फट् स्वाहा
ऊँ णमो उवज्झायणं ह्मं एहि एहि भगवति वज्रकवच वजिणि रक्ष रक्ष हुं फट् स्वाहा।
ऊँ णमो लोए सव्वसाहूणं ह्मः क्षिप्रं साधय साधय वजहस्ते शूलिनि, दुष्टान् रक्ष रक्ष हुं फट् स्वाहा।

जब कभी अचानक कहीं अपने ऊपर उपद्रव आ जाए, खाते-पीते, सफर में जाते, सोते बैठते तो फौरन इस मन्त्र का स्मरण करे, यह मन्त्र बार बार पढ़ना शुरू करे। सब उपद्रव् नष्ट हो जावें, उपसर्ग दूर हों, खतरे से जान-माल बचे।

तृतीय रक्षामन्त्र

ऊँ णमो अरहंताणं, णमो सिद्धाणां, णमो आयरियाणं, णमो उवज्झायाणं, णमो लोए सव्वसाहूणं। ऐसो पंच णमोयारो सव्व पावप्पणासणी। मंगलाणं च सव्वेसिं पढमं हवइ मंगलम्।

ऊँ ह्मीं ह्मू फट् स्वाहा।

चतुर्थ रक्षामन्त्र

ऊँ णमो अरहंताणं नाभौ--यह पद नाभि में धारिए
ऊँ णमो सिद्धाणं हृदि--यह पद हृदय में धारिए
ऊँ णमो आयरियाणं कण्ठे--यह पद कण्ठ में धारिए
ऊँ णमो उवज्झायाणं मुखे--यह पद मुख में धारिए
ऊँ णमो लोए सव्वसाहूणं मस्तके--यह पद मस्तक में धारिए
सर्वांगे मां रक्ष श्रख हिल हिल मातंगिनि स्वाहा

यह भी रक्षामन्त्र है। जो अंग जिसके सम्मुख लिख है, वह मन्त्र का चरण पढ़कर उस अंग का मन में चिन्तवन करे जैसे वह उस अंग में रखा हो ऐसा समझे। यह मन्त्र इस ्रकार 108 बार पढ़े, रक्षा होगी।

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