सब कार्यों में पांचों वर्णों के फूलों की माला श्रेष्ठ है। परंतु दुष्टों को डराने में तथा सतम्भन करने व कीलने में कठोर (सख्त) वस्तु के मणियों की माला से जाप्य करे।
मन्त्र साधन करने वाला धर्म के लिए तथा काम और मोक्ष के लिए पोताजीया की माला से जाप्य करे। शांति के लिए और पुत्र प्राप्ति के वास्ते मोती आदि की उत्तम माला से जाप्य करे। शांति से यह तात्पर्य है कि जैसे रोगी आदि के लिए रोग की शांति करना या दैवी वगैरह किसी का उपद्रव हो उसकी शांति करना।
शांति के प्रयोग में मन्त्र जाप्य करने वाला आधी रात के समय पश्चिम दिशा की ओर मुख करके ज्ञान-मुद्रा-सहित कमलासन-युक्त मोतियों की माला से स्वधे स्वते पू0 चं0 क्रां0 का उच्चारण करता हुआ जाप्य करे।
स्तम्भन (रोकना तथा कीलना) के प्रयोग में पूर्वाह्न अर्थात दुपहर से पहले काल में, वज्रासनयुक्त पूर्व दिशा की तरफ मुख करके स्वर्ण के मणियों की माला से पीले रंग के वस्त्र पहले हुए ठः ठः उच्चारण करता हुआ जाप्य करे।
दुश्मन का उच्चाटन करने के लिए रूद्राक्ष की माला, वैर में जियापोते की माला, मोक्षामिलाविषयों को स्फटिकमणि की तथा सूत्र की माला श्रेष्ठ है।
उच्चाटन इसके प्रयोग में वायव्य कोण (पश्चिम और उत्तर के बीच में) की तरफ मुख करके अपराह्न (दुपहर के बाद) में कुक्कुटासनयुक्त मूंगे की माला से आगे धूप रखकर व फडिति पल्लव लगा कर अंगूठा और तर्जनी से जाप करे।
वशीकरण अर्थात वश में करना (अपने अधीन करना) इसके प्रयोग में पूर्वाह्न, दोपहर के पहले काल में स्वस्तिकासन युक्त उत्तर दिशा की तरफ मुख करे कमलमुद्रा सति मूंगे की माला से जपे। कुसुमवर्ण वषट् उच्चारण करता हुआ जाप्य करे।
डाभ के आसन पर बैठ कर लाल कपड़े सहित यन्त्रोद्वार............ लाल फूल रखता हुआ बांये हाथ से जाप्य करे।
आकृष्टि-बुलाना इसके प्रयोग में पूर्वाह्न (दोपहर से पहले) काल में दण्डासन युक्त अंकुश मुद्रा-सहित दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके मूंगे की माला से (उदयार्कवर्ण).......... वौषट् उच्चारण करता हुआ अंगूठे और बीच की अंगुलि से जाप्य करे।
निषिद्ध सन्ध्या समय में भद्र पीठासन युक्त ईशान (उत्तर और पूर्व दिशा के बीच) की तरफ मुख करके वज्रमुदा्र-युक्ती वा पोता माला से धूप खेता हुआ या होम करता हुआ। अूंगूठे और कनिष्ठा से जाप करे।
नोट- बगैर रक्षा -मन्त्र जम के मन्त्र साधन करते हैं अक्सर व्यन्तरों से डराये जाकर अधबीच में मन्त्र साधन छोड़ देने से पागल हो जाते हैं। इसलिए जब कोई मन्त्र-सिद्धि करने बैठे तो मन्त्र जपना आरम्भ करने से पूर्व इनमें सके कोई रक्षा-मन्त्र जरूर जप लेना चाहिए। इससे मन्त्र साधन करने में कोई उपद्रव नहीं हो सकेगा और कोई व्यन्तर वगैरह रूप बदल कर ध्यान में विघ्न नहीं डाल सकेगा। कुण्डली के अन्दर आ नहीं सकेगा।