।। मंगलग्रह अरिष्ट निवारक ।।

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(अब मण्डल के ऊपर मंगलग्रह के स्थान पर श्रीफल सहित अघ्र्य चढ़ावें।)

तर्ज-आओ बच्चो.................
आवो हमस ब करें अर्चना, वासुपूज्य भगवान की।।
मंगलग्रह की बाधा नाश कर, तीर्थंकर भगवान की।।
वन्द्र जिनवरम्-4 टे.।।
काल अनादी से कर्मों का, ग्रह आत्मा के संग लगा।
आत्मनिधी को भी न ‘‘चन्दना’’, स्वयं जीव कर प्राप्त सका।।
इसीलिए अब पूजन कर लूं, मिले राह निर्वाण की।
मंगलग्रह की बाधा नाशक, तीर्थंकर भगवान की।।
वन्द्र जिनवरम्, वन्दे जिवरम्।।
ऊँ ह्मीं मंगलग्रहारिष्टनिवारक श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्रय पूर्णाध्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।
जाप्य मंत्र ऊँ ह्मीं मंगलग्रहारिष्टनिवारक श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्रय नमः।

जयमाला

-शंभुछंद-

हे वासुपूज्य देव! करूं अर्चना तेरी।
हे वासुपूज्य देव! करूं वन्दना तेरी।।
हे नाथ! पूर्ण कर दो, एक प्रार्थना मेरी।
मेरे अष्टि नष्ट हों, हो कामना पूरी।।1।।

कुछ पुण्य के संयोग से, मानव जनम मिला।
लेकिन अशुभ के योग से, कुल जैन ना मिला।।
हे नाथ! पूर्ण कर दो, एक प्रार्थना मेरी।
मेरे अरिष्ट नष्ट हों, हो कामना पूरी।।2।।

जैनत्व भी मिला तो न, उपयोग कर सका।
जिनवाणी को सुना न उसे, मन में धर सका।।
हे नाथ! पूर्ण कर दो, एक प्रार्थना मेरी।
मेरे अरिष्ट नष्ट हों, हो कामना पूरी।।3।।

जब ज्ञान हुआ आपका, दरबार है सच्चा।
तब भक्तिभाव से शरण, लही करो रक्षा।।
हे नाथ! पूर्ण कर दो, एक प्रार्थना मेरी।
मेरे अष्टि नष्ट हों, हो कामना पूरी।।4।।

चम्पापुरी के राजा, श्रीवसुपूज्य धन्य थे।
माता जयावती के घर, में बरसे रत्न थे।।
हे नाथ! पूर्ण कर दो, एक प्रार्थना मेरी।
मेरे अरिष्ट नष्ट हों, हो कामना पूरी।।5।।

कल्याण करके अपना पुनः जग को संवारा।
श्रीवासुपूज्य ने दिया, भव्यों को सहारा।।
हे नाथ! पूर्ण कर दो, एक प्रार्थना मेरी।
मेरे अरिष्ट नष्ट हों, हो कामना पूरी।।6।।

अब आपकी छाया से मुझे, शांति मिली है।
मेरे हृदय में ‘‘चन्दना’’ इस, ज्योति जली है।।
हे नाथ! पूर्ण कर दो, एक प्रार्थना मेरी।
मेरे अरिष्ट नष्ट हों, हो कामना पूरी।।7।।

इस अघ्र्य थाल को करूं, अर्पित मैं चरण में।
रक्षा करो अब ले लो, अपनी ही शरण में।।
हे नाथ पूर्ण कर दो, एक प्रार्थना मेरी।
मेरे अरिष्ट नष्ट हों, हो कामना पूरी।।8।।
ऊँ ह्मीं मंगलग्रहारिष्टनिवारक श्रीवासुपूज्यजिनेन्द्रय पूर्णाघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलिः।  

-दोहा-

वासुपूज्य वसुपूज्य सुत, वन्दन करूं त्रिकाल।
तभी पूज्य बन आत्मा, होगी मालामाल।।
इत्याशीर्वादः
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