।। गुरूग्रहारिष्ट निवारक ।।

jain temple349

शांति करूं नाथ के पद में।
शांति हो विश्व में यही मेरी आशा है।
वीर महावीर वर्धमान की अर्चना।
नाथ! ग्रह वृहस्पती दुःख दे रंच ना।
शांतये शांतिधारा।

कल्पवृक्ष के सुमन हैं नहीं पास में।
ये ही कोमल कुसुम मैं लिया हाथ में।।
वीर महावीर वर्धमान की अर्चना।
नाथ! ग्रह वृहस्पती दुख दे रंच ना।।
दिव्य पुष्पांजलिः।

(अब मण्डल के ऊपर गुरूग्रह के स्थान पर श्रीफल सहित अघ्र्य चढ़ावें)

महावीर प्रभू के चरणो में, श्रीफलयुत अघ्र्य चढ़ायं हम।
श्रद्धा से प्रभु पद कमलों में, भावों के कुसुम चढ़ाएं हम।।
यदि जन्मकुंडली में गुरूग्रह, कुछ निम्मश्रेणी में रहता है।
गुण भी अवगुण की तरह बनें, अपमान भी सहना पड़ता है।।
‘‘चन्दनामती’’ ग्रह कष्ट न दें, बस यही भावना भाएं हम।
श्रद्धा से प्रभु पदकमलों में, भावों के कुसुम चढ़ाएं हम।।1।।
ऊँ ह्मीं गुरूग्रहारिष्टनिवारक श्रीमहावीरजिनेन्द्रय पूर्णाघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा।

शांतये शांतिधार, दिव्य पुष्पांजलिः।

जाप्य मंत्र - ऊँ ह्मीं गुरूग्रहारिष्टनिवारक श्री महावीरजिनेन्द्राय नमः।

जयमाला

तर्ज-फिरकी वाली...................

वीरा वीरा, मेरे महावीर, मेरे अतिवीरा, सन्मति वर्धमान है।
मैनें पूजन रचाई भगवानहै। टेक.।।

चैत्र सुदी तेरस के दिन जब, जन्मकल्याणक आया था।
स्वर्गों से इन्द्रों ने आकर, उत्सव खूब मनाया था।।
ऐरावत पर, तुमकों लाकर, चला इन्द्र सह परिकर,
वीरा तुमको, सुमेरूपर्वत की, पांडुकशिाल पर, किया विराजमान है।
जन्म अभिषव कर पुकारा तेरा नाम है।
वीरा, वीरा, मेरे महावीरा, मेरे अतिवीरा, सन्मति वर्धमान है।
मैंने पूजन रचाई भगवान है।।1।।
यौवन में ही दीक्षा लेकर, बालयती कहलाए थे।
केवलज्ञान प्राप्त कर प्रभुजी, समवसरण में आए थे।।
दिव्यध्वनि से, सारे जग के, जीव हुए प्रतिबोधित,
वीरा तेरी , सुहानी वाणी, को सुनकर ज्ञानी, बने भगवान हैं।।
सारे जग का सितारा वर्धमान है।
वीरा, वीरा, मेरे महावीर, मेरे अतिवीर, सन्मति वर्धमान है।
मैंने पूजन रचाई भगवान है।।2।।
कार्तिक कृष्ण अमावस के दिन, सिद्ध अथवा पाई थी।
पावापुरि नगरी में सबने, दीपवली मनाई थी।।
युग के अंतिम, तीर्थंकर तुम, करे ‘‘चन्दना’’ वन्दन,
वीरा तेरी, अमर है कहानी, सभीने जानी, न तुझ सी कोई शान है।
सारे जग का सितारा वर्धमान है।
वीरा वीरा, मेरे महावीरा, मेरे अतिवीरा, सन्मति वर्धमान है।
मैंने पूजन रचाई भगवान है।।3।।
गुरू ग्रह के स्वामी महावीरा, मेरा गुरू ग्रह उच्च करो।
धर्म में रूचि हो ज्ञान, गुरू समय प्रभु रक्षा स्वयं करो।
ऋद्धि सिद्धि में, होवे वृद्धी, पाऊं धन समृद्धी,
वीरा तेरी, सुखद है कहानी, जगत कल्याणी, सभी को मान्य है।
मैंने पूजन रचाई भगवान है।।4।।
ऊँ ह्मीं गुरूग्रहारिष्टनिवारक श्रीमहावीरजिनेन्द्रय जयमाला पूर्णाघ्र्यम् निर्वपामीति स्वाहा।
शांतये शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलिः।

-दोहा-

महावीर भगवान की, पूजा भक्ति महान।
इनकी पूजा से मिले, क्रमशः पद निर्वाण।।
इत्याशीर्वादः पुष्पांजलिः।
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