पहले ब्याह रचाय, फिर संन्यास लिया था। केवल उपाय, जग कल्याण किया था।। सम्मेदाचल जाय, ऐसा ध्यान किया था। आठों कर्म नशाय, पद निर्वाण लिया था।।2।। पहले निजग्रह नाश, कर फिर परग्रह नाशा। पूर्ण हुई निज आश, पर की भी अभिलाषा। यह महिमा सुन आज, भक्त तिहारे आए। सुनो मेरे महाराज, तुम से प्रभु हम पाए।।3।। कर्म अनादीकाल, से मेरे संग लागे। इसीलिए ग्रहचन्द्र, मुझको आय सताते।। तुम शशिग्रह के नाथ! मेरी कष्ट हरो जी। मेरा सब दुखदर्द, प्रभु अब दूर करो जी।।4।। इसीलिए यह अघ्र्य, करूं समर्पण प्रभु जी। मेरा सब कुछ आज, तुझको अर्पण प्रभु जी।। ग्रह शान्ती के साथ, आतमशक्ति दिला दो। झुका ‘चन्दना’ माथ, परमातम प्रगटा दो।। ऊँ ह्मीं चन्द्रग्रहारिष्टनिवारक श्री चन्द्रप्रभजिनेन्द्रय जयमाला पूर्णाघ्र्यं निर्वपामीति स्वाहा। शान्तेय शांतिधारा, दिव्य पुष्पांजलिः।
-दोहा-